धर्मान्तरण की राजनीति : कब तक ? – कॅंवल भारती

Kanwal B

विपक्ष ने धर्मान्तरण का मुद्दा ऐसे उठाया है, जैसे उनके लिए इससे बड़ा लाभ का मुद्दा कोई हो ही नहीं सकता। लेकिन मुद्दा सिर्फ इतना है कि विपक्ष जिसे धर्मान्तरण कह रहा है, संघ परिवार उसे ‘घर-वापसी’ कह रहा है। सच्चाई यह है कि दोनों झूठ की राजनीति कर रहे हैं। न कहीं धर्मान्तरण हो रहा है और न कहीं घर-वापसी हो रही है। दरअसल झूठ बोलने में संघपरिवार से कोई नहीं जीत सकता। उसके मुख्यालय से जो शब्द निकलता है, उसी को उसके सारे प्रचारक रटटू तोता की तरह बोलते हैं। यही झूठ बोल-बोलकर उन्होंने बाबरी मस्जिद तोड़ी थी कि यहाँ रामलला पैदा हुए थे। इतिहास के सारे सत्य एकतरफ और संघ का झूठ एक तरफ। झूठ इतने जोर-शोर से बोला गया कि वह सत्य पर भारी पड़ गया। झूठ को आस्था से जोड़ दिया गया और आस्था को संविधान से भी ऊपर घोषित कर दिया गया। यही झूठ संघपरिवार के घर-वापसी कार्यक्रम में बोला जा रहा है। उसके नेता कह रहे हैं कि जो स्वेच्छा से घर वापस आना चाहते हैं, हम उनकी घर वापसी करा रहे हैं। पर, उन्होंने जहाँ –जहाँ भी घर वापसी के कार्यक्रम किए, वहाँ सभी जगह उनके झूठ पकड़े गए हैं। झूठ यह था कि संघ के नेताओं ने कुछ बेहद गरीब निचली जातियों के लोगों को बहला-फुसलाकर हवन में बैठाकर मीडिया के सामने उनकी घर वापसी करा दी। यह एक तरह से जबरन घर वापसी थी। पर मीडिया ने उसे ऐसा उछाला, जैसे कोई बहुत बड़ा कारनामा हो गया हो। अगर मीडिया ने इस प्रोपेगेण्डा को हवा न दी होती, तो संघ की हवा खुद ही निकल जाती। हालाॅंकि बाद में मीडिया ने हकीकत भी दिखाई और झूठ का पर्दाफाश भी किया। लेकिन तब तक मीडिया ने विपक्ष को संघ और भाजपा के खिलाफ एक अर्थहीन मुद्दा दे दिया, और विपक्ष ने उसे जबरदस्त तरीके से जबरन धर्मान्तरण के विरोध में गरमा दिया। संघ यही चाहता था कि जबरन धर्मान्तरण के विरोध में माहौल गरम हो और उसके विरुद्ध कानून बनाने का रास्ता बने। यहीं पर संघ जीत गया और विपक्ष हार गया। विपक्षी दलों के नेताओं ने भी मामले को ठीक से समझे बगैर नासमझी के बयान देने शुरु कर दिए। किसी ने कहा, पहले मुख्तार अब्बास नक़बी का धर्मपरिवर्तन कराओ। कोई नेता बोले कि कश्मीर में धर्मपरिवर्तन क्यों नहीं कराते? उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव ने भी नासमझी का बयान दे दिया कि उनका भी धर्मपरिवर्तन करके दिखाओ? ये समझ नहीं पा रहे हैं या समझना नहीं चाहते कि मामला जबरन धर्मपरिवर्तन का नहीं है। लेकिन दोनों ओर से तीखी बयानबाजी हो रही है, जिसमें सारी नैतिक सीमायें लाँघी जा रही हैं। सीधे-सीधे यह मुद्दा अब हिन्दू और मुस्लिम विरोध का बन गया है और राजनीति के अखाड़े में दोनों नेताओं की जुबानी जंग चल रही है। यह जानते हुए भी कि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, और कभी हिन्दू देश नहीं बन सकता, संघ के नेता चिल्लाए जा रहे हैं कि देश हिन्दुओं का है, इसमें मुसलमानों और ईसाईयों का क्या काम? अशोक सिघल चिल्ला रहे हैं कि ईसाई और मुसलमान ही विश्वयुद्ध कराते हैं। आजम खान कह रहे हैं कि कुत्तों को इन्सान नहीं बनाया जा सकता और संघ के नेता मुसलमानों को जलील कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर यह जंग गाली-गलौंच के स्तर पर पहुंचकर और खतरनाक हो गई है। लेकिन सवाल यह है कि इससे क्या हासिल होना है?
राज्यसभा में कामकाज ठप्प है। इसे विपक्ष अपनी जीत बता रहा है। पर यह निरर्थक जीत है, जिसका कुछ भी लाभ उन्हें मिलने वाला नहीं है। संघ के मुद्दे जनता का ध्यान रोजी-रोटी के मुद्दों से हटाने के लिए होते हैं और उसमें वह सफल होता है। विपक्ष अपनी राजनीति चमकाने के लिए संघ के मुद्दों को ही उठाकर संघ को ही फायदा पहुंचाता है। ठीक है कि राजनीति में विपक्ष का विरोध जरूरी है, क्योंकि उन्हें राजनीति करनी है। तब क्या राजनीति सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम को केन्द्र में रखकर ही की जाएगी? अगर संघ और भाजपा को हिन्दुओं की और विपक्षी दलों को मुसलमानों की राजनीति करनी है, तो जो लोग इस घृणित राजनीति के दायरे से बाहर हैं, वे कहाँ जायेंगे? उनकी राजनीति कौन करेगा? लोकतन्त्र की राजनीति कौन करेगा? संविधान की रक्षा की राजनीति कौन करेगा? क्या साम्प्रदायिक राजनीति को ही लोकतन्त्र का आधार बनाया जाएगा? इससे किस को लाभ होने वाला है? देश को? हरगिज नहीं। अगर विप़क्ष ने, हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति से ऊपर उठकर राजनीति की होती, तो लोकसभा में उनके दलों का इतना बुरा हश्र नहीं होता और न उसे हवा में अपनी ताकत दिखाने की आज नौबत आती।
यह घृणित राजनीति आम जनता का कोई भला करने वाली नहीं है। आज हिन्दुओं को मुसलमानों से और मुसलमानों को हिन्दुओं से तथा अगड़ों को पिछड़ों से और पिछड़ों को अगड़ों से लड़ाने की जो राजनीति खेली जा रही है, उसी के बल पर इन वर्गों के थैलीशाह राजनीति में मलाई खा रहे हैं और निजी पूंजीवाद गरीबों को रोंदता हुआ आगे बढ़ रहा है। इस सच्चाई को जनता को ही समझना होगा।
(23 दिसम्बर 2014)

One thought on “धर्मान्तरण की राजनीति : कब तक ? – कॅंवल भारती

  1. संघ की स्थापना क्यो कि गयी .क्योकि हिन्दु को हिन्दु कहने पर शर्म आ रही थी ……..
    अरे आप क्या जाने गुलामी क्या होती है…
    अगर हिन्दुस्थान मे संघ नही होता तो आज हमारी भी वही हालत होती!
    आज हम अंग्रजो से तो आजाद हो गये पर उनके द्वारा समाज मे फैलायी गयी सामाजिक ,मानसिक, राजनैतिक ,शिक्षा आदि कई रूप मे उभर कर हमारे सामने मौजुद है……….जिसे हम जान कर कुछ नही कर सकते …पर जो रोकने का काम कर रहै हैं !उसे हमे रोकना नही बल्कि सहयोग करना है !
    आज विदेशी शिक्षा के कारण समाज व धर्म की हालत खराब है”!

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