हल्ला हुआ है जी हल्ला हुआ है – Iqbal Abhimanyu

Iqbal 2

कहीं किसी रानी के
कहीं किसी पोते को
बेटा हुआ है,
बेटा हुआ है जी बेटा हुआ है,

सोने की चम्मच
फैशनेबल पालकी
फोटोजेनिक चेहरा
लेटा हुआ है
लेटा हुआ है जी लेटा हुआ है

खबर है खबर है
जबर है जबर है
पेपर में टीवी में
हल्ला हुआ है
हल्ला हुआ है जी हल्ला हुआ है

वो हमारा बाप है
पर हैं सुर्खाब के
गुलामों के खून से
सींचा घर आँगन है
जहां कदम रख दे
बिछने लगें सब
सैकड़ों सालों से
यही तो आलम है

अपने शहजादे
कीचड में लोटे
सर्दी में ठिठुरें
किस्मत के खोटे

ढाबों पे बर्तन वो मांजें
फटे चीथड़ों में वो साजे
घर में बाप से मार खाए
स्कूल में मास्टर न आए

वो सिग्नल पे अड़ के खड़े हैं
स्टेशन पे नंगे फिरे हैं
कचरा बीनते चल रहे हैं

खबर है खबर है
जबर है जबर है
जहर खा के बच्चे मरे हैं
सियासत के कच्चे मरे हैं
कुपोषण से बच्चे मरे हैं
बाढ़ों में बच्चे बहे हैं

न खबर है न हल्ला है
कि जो मरा नहीं
वो बच्चा
कब तक जिएगा
कहाँ जियेगा, कैसे जियेगा
कब तक मरेगा, कहाँ मरेगा
कैसे मरेगा
कि उसके लिए शाही बैंड बजेगा या नहीं
कि ब्रिटिश तख़्त के उत्तराधिकार में उसका कौन सा नंबर होगा

पर हाँ,
वो खुशकिस्मत होगा
मरकर भी जो
छप सकेगा

और
साम्राज्य कायम रहेगा
राजकुमार छपते रहेंगे
गुमनाम बच्चे मरते रहेंगे

आखिर सुर्ख़ियों के लिए
राजा का पैदा होना
और गुलामों का झुंडों में
सनसनीखेज तरीके से मरना
ज़रूरी है

(By- Iqbal Abhimanyu)

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