एक चीख कहीं से उभरी – Mayank Saxena

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खीर खाने से एक अवतार पैदा हुए…
एक मसीहा मर के ज़िंदा हो गए…
एक नबी पानी पर चल के सागर पार कर गए…
एक किताब आसमान से उतरी…
एक देवता ने धरती हाथ से थामी…
एक ऋषि पी गए समुद्र का पानी…
एक देवता ने एक औरत को बना दिया पत्थर…
दूसरे देवता ने उसे फिर बनाया स्त्री
एक अवतार ने जान ली एक शूद्र की…
एक नबी की विरासत को लेकर मचा क़त्ल ए आम…
ईश्वर के बेटे की बात फैलाई गई धर्मयुद्ध से
एक धर्म काला पड़ गया…
दूसरा धर्म बीमार हो गया…
तीसरे धर्म को मार गया लकवा…
चौथा धर्म कुंठा से मनोरोगी हो गया…
एक इंसान भगवान हो गया…
कुछ इंसान हो गए उसके प्रवर्तक…
भगवान पूजाघरों में घुस गया…
महलों में बस गए प्रवर्तक…
करोड़ों लोग धर्मों को मानने लगे…
उनमें से कुछ बीमार हो गए..
कुछ काले पड़ गए…
कुछ को मार गया दिमागी लकवा…
बाकी कुपोषित हैं…
एक नारा हवा में उछला खो गया…
एक नास्तिक जेल में था
एक को फांसी हुई
एक को बलात्कार
एक को मार दिया सड़क पर ही
एक सवाल तैरता रहा दुनिया भर की हवा में….
एक जवाब जो कहीं नहीं मिला…
एक तलवार कहीं से निकली…
एक चीख कहीं से उभरी…
धर्म की जय हो…
अधर्म का नाश हो…

One thought on “एक चीख कहीं से उभरी – Mayank Saxena

  1. भाई मयंक बहुत अच्छा लिख रहे हो, कविके रूप में आप मेरी पसंद बन गए.

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