पाकिस्तान के चुनावी समर ने सरबजीत की बलि मांगी थी : मोहम्मद अनस

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आतंकवाद और जासूसी के जुर्म में मौत की सजा पाए भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में जिस निर्दयता से ह्त्या की गयी वह पाकिस्तान और भारत के बीच लगातार बन रहे विश्वास बहाली और आपसी सौहार्द के वातावरण को दूषित करने के लिए काफी है। भारत और पाकिस्तान के हुक्मरानों ने समय-समय पर आपसी टकराव का जो माहौल बनाया है, सरबजीत उसी का एक हिस्सा मात्र है । राजनैतिक महत्वाकांक्षा और नागरिकों को मूल मुद्दों से भटका कर उन्हें सदियों पुरानी रंजिश के बीच ला कर छोड़ देने की चाल सरबजीत को मोहरा बना गयी।

पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतों के पास इस बार के चुनाव में ना तो कोई सशक्त मुद्दा है और ना ही वहां के आम चुनाव में हमेशा की तरह भारत विरोधी लहर। मुद्दों की शून्यता और भारत के प्रति पाकिस्तानी अवाम की बदलती धारणा ने पाकिस्तान की विभिन्न सियासी जमातों और खुद सेना में उलझन को जन्म दे दिया है। कश्मीर का मुद्दा हमेशा की तरह चुनाव पर भारी नहीं है , भारत विरोधी लहर चुनाव का अभिन्न अंग बन नहीं पायी। वहीँ दूसरी तरफ जरदारी से लेकर मुशर्रफ तक की सियासी अस्थिरता ने पाकिस्तान के नीति निर्मातों की नींदे हराम कर रखी है। भ्रष्टाचार और आतंक के पक्ष को कमज़ोर करने के वायदे से चुनाव लड़ रहे इमरान खान की भारत के प्रति नरम रुख की पाकिस्तानी राजनीति के कट्टरपंथी धड़े द्वारा आलोचना इस बात का सबूत है कि इमरान मजबूत स्तिथि में हैं। खैबर पख्तून ख्वाह से लेकर बलूचिस्तान तक में अशांति का जो माहौल पाकिस्तान सेना और कट्टरपंथी द्वारा बनाया गया है उससे उभरने के लिए जनता खुद-ब- खुद शान्ति और सौहार्द की तरफ मासूमियत से देख रही है। आज तक जिन लोगों के हाथों में बम और बारूद हुआ करते थे वो खुद ही उन हथियारों का शिकार बन रहे हैं। जिस खून को कभी वो कश्मीर के नाम पर उबाला करते थे आज वही खून उनकी मस्जिदों और बरामदों में बह रहा है। जिस फौज का  हाथ उनके काँधे पर था वही फौज आज उनके सीने को गोलियों से चाक कर रही है। इतना कुछ जान और समझ लेने के बाद यह मुमकिन नहीं कि अवाम इसी मार काट को पसंद करेगी। मनोवैज्ञानिक पक्ष भी यही कहता है की हम युद्धोन्माद के बजाये सहज और सरल जीवन को प्राथमिकता देते हैं ,लेकिन पाकिस्तान के अन्दरूनी हालात इस काबिल नहीं बन पाए हैं कि सत्ता की चाबी पाने वाले लोग इस कदर बिगड़ी समस्या का हल निकाल सकें। अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के बलूचिस्तान की  आंतरिक समस्या धीरे धीरे सिंध से लेकर कराची तक को अपने जद में लेने जैसी बनती जा रही है।

राजनैतिक अस्थिरता की यह विकट समस्या सियासी गलियारों से संभाली नही जाती तो अवाम को उन समस्याओं से रूबरू करवा देते हैं जिससे राष्ट्रीय हित और आत्मसम्मान जुड़ा होता है। सरबजीत ना सिर्फ बम धमाकों का आरोपी था बल्कि उन धमाकों में कई पाकिस्तान नागरिक मारे भी गए थे और उन धमाकों में मरने वालों की सामूहिक पीड़ा सरबजीत की मौत के बाद समाप्त होती , ठीक वैसे ही जैसे कुछ दिनों पहले संसद पर कथित रूप से हमले के आरोपी कश्मीरी अफज़ल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया बिना उसके परिवार को सूचित किये हुए। दोनों देश में अवाम की एक बड़ी संख्या आज भी बदले की भावना लिए जीती है। अफज़ल चूँकि पाकिस्तानी नहीं बल्कि भारतीय था और उसके खिलाफ संसद हमले में सीधे सबूत भी नहीं थे, उसके बावजूद उसे इसलिए फांसी दी गयी क्योकि ऐसा करने से भारत की एक बड़ी आबादी की भावनाओं की तुष्टि होती और ऐसा हुआ भी। आज सरबजीत के साथ भी ठीक वैसा ही हो रहा है।

घोटालों की जवाबदेही से घिरी संप्रग सरकार और बगैर किसी ठोस मुद्दे के लड़ा जा रहा पाकिस्तान में आम चुनाव दोनों तरफ की सियासत और सियासत करने वालों के लिए कई सारी परेशानियों का सबब बनता जा रहा है। ऐसे में पारम्परिक छल -द्वेष आदि का पासा हुक्मरानों ने फेंका है जिसे लपकने के लिए सरकार से कम जनता में अधिक बेचैनी देखी जा सकती है। ये वही जनता है जो दंगों में शामिल होती है ,ये वही लोग हैं जो राष्ट्र भक्त बनते तो हैं पर राष्ट्र की असल समस्याओं के विपरीत काम करते हैं ,इनका प्रचार रूपी देशभक्ति ज्वार आता है और फिर बिना कुछ बहाए सिमट के दम तोड़ देता है ,सिर्फ एक बात की कामयाबी इन्हें ज़रूर मिलती है और वो है सांप्रदायिक विद्वेष ,भारत में रह रहे मुसलमानों को हमेशा से पाकिस्तान के साथ जोड़ कर देखा जाता रहा है और यह काम दक्षिणपंथी जमाते करती रहीं है क्योकि इनकी राजनीति का यही आधार है।  जैसे पाकिस्तान में भारत के खिलाफ वहां के कट्टरपंथी प्रचार करते हैं ठीक वैसे ही भारत की सियासी जमाते जिसमे परोक्ष रूप से कांग्रेस और प्रत्यक्ष रूप से भाजपा ,संघ आदि शामिल हैं लगातार इस तरह के मुद्दों पर धर्म की राजनीति करने बैठ जाते हैं। सरबजीत के साथ हुई बर्बरता को वही लोग सही ठहराएंगे जिन्होंने कुछ दिनों पहले अफज़ल गुरु की सजा को सही करार दिया था ,क्योकि अफज़ल भी उसी तरह के जुर्म में आरोपी बनाया गया था जिस तरह के अपराध में सरबजीत पाकिस्तान में बनाया गया ,इस तरह की परिस्तिथियों को समझने के बाद सियासत करने वालों की हर चाल को समझने में ज्यादा माथापच्ची करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

ये राष्ट्रीयता का नहीं बल्कि मानवाधिकारों और जनता के हितों के दोहन का मामला है। इस मामले का विरोध देशभक्ति की अलख जगाने के लिए नहीं बल्कि सरकारों से सचेत रहने के लिए करने की आवश्यकता है। इसका विरोध इसलिए भी होना चाहिए क्योकि हमें अमन पसंद है तसद्दुद नही !

मोहम्मद अनस स्वतंत्र पत्रकार हैं। सामाजिक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। फिलहाल इनका ठिकाना दिल्ली में हैं।

2 thoughts on “पाकिस्तान के चुनावी समर ने सरबजीत की बलि मांगी थी : मोहम्मद अनस

  1. सबरजीत….एक दुखद मौत!
    हमारे लिए तो वो सालों पहले ही शहीद हो गया था!!
    पकिस्तान धीमे-धीमे उसके गले दबाता रहा.
    भारत में सरकारें बदलती रहीं और ख़ामोशी से पूरी तरह दम निकलने का इंतज़ार करती रहीं.

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