वहाबी इस्लाम (Wahabi Islam- Khursheed Anwar)

Khursheed Anwar
Khursheed Anwar

मैं कोई धर्म नहीं मानता. नास्तिक हूँ. पर जब देखता हूँ कि हर रोज खून का खेल खेलते हैं यह आतंकी तो एक बात दुहराना चाहता हूँ .मैं कहता आया हूँ कि समझने की ज़रूरत है आतंकवाद को जिसे आम बोल चाल में “इस्लामी आतंकवाद” कहा जाता है. इस्लाम नहीं है और इनके निशाने 99 फीसद इस्लाम के अनुयायी हैं. वहाबी इस्लाम केवल एक मात्र धाराहै इस्लाम की जिसे इस्लाम के दायरे से खारिज होना ही पड़ेगा, केवल वही आतंक फैला रहे हैं. बाकी 71 इस्लामी संप्रदाय के लोगों को यह पीस रहे हैं. और भारत में हर दाढ़ी टोपी वाले से लेकर जींस और टी शर्ट वाला मुसलमान आतंकवादी समझा जाता है

देवबंद पर कुछ कहने की हिम्मत क्यों नहीं लोगों में. यह इस्लाम के ठेकेदार घटिया फतवे देने वाले और वहाबियत के अलमबरदार. छोटे भाई का पैजामा और बड़े भाई का कुरता पहनकर तबलीग का ज़हर फैलाने वाले…इन पर बोलने में डर क्यों…इनकी वजह से खून बहता है और इनकी ही सुनी जाती हैं बातें…समय आ गया कि सऊदी अरबिया के इन पिट्ठुओं को और हिन्दुस्तान से लेकर पकिस्तान , अफगानिस्तान तक फैली इनकी विचारधारा को तमाचा पड़े..

वहाबी इस्लाम को एशिया में परवान चढाने और खुनी दास्ताँ लिखने का सेहरा जिया-उल-हक को है. ज़िया ( कमबख्त का नाम उजाला: ज़ुल्मत को ज़िया : जालिब ने क्या खूब कहा था ) एक कट्टर वहाबी ही नहीं था..सऊदी अरबिया का पिट्ठू भी था. कल थोड़ी प्रष्ठभूमि दे चुका हूँ.
16 सितम्बर 1978 ज़िया सत्ता में आया और पत्ता खेला

1977 में लायलपुर का नाम किंग फैसल के नाम पर फैसलाबाद रखा जा चुका था. अब पत्ता खेला ज़िया ने फ़ौरन सऊदी अरबिया की यात्रा करके. अरबों पेट्रो डालर लाया वहां से .
!979: ज़िया के हाथ एक नया पत्ता आया
१ अप्रैल 1979 को अयातोल्लाह खुमैनी इरान में सत्ता में आया. यह इरान के ;लिए तो खतरा बना ही क्योंकि इसने इस्लाम के नाम पर इरान को खूब तबाह किया पर अमरीका और सऊदी अरबिया के लिए भी खतरा बना ..ध्यान देने वाली बात यह है कि इरान शिया राष्ट्र बना और सऊदी वहाबी. अब ज़िया ने पत्ता खेला. आहा खुदा फ़ारसी शब्द यानि इरान की भाषा. अल्लाह अरबी..यही अरब दुनिया जहाँ सऊदी भी है. ज़िया ने फ़ौरन मीडिया को हुक्म दिया “खुदा हाफिज़” बंद और “अल्लाह हाफिज़” शुरू ..अचानक रेडियो पाकिस्तान ने खबर पढ़ने के बाद कहा “अल्लाह हाफिज़..जून 1979.

सऊदी अरबिया और अमरीका ने माना कि ज़िया उनके साथ है. और इरान के खिलाफ

दूसरा मौक़ा उसी साल: अफगानिस्तान में कमुनिस्ट सरकार बन चुकी थी तराकी के नेतृत्व में 3, जुलाई 1979 अमरीकी प्रेसिडेंट कार्टर अफगानिस्तान के तमाम
विरोधियों को वित्तीय सहायता के मसौदे पर दस्तखत किये.

पहली सहायता वहाबी सऊदी अरबिया के ज़रिये वहाबी ज़िया के पाकिस्तान को आई. सितम्बर 1979.

ज़िया की किस्मत .. 27, दिसंबर 1979 को सोवियत फौजें अफगानिस्तान में.

अब शुरू हुआ वहाबी तांडव फुल फॉर्म में.

क्यों कोई अल-काएदा का लीडर पाकिस्तानी नहीं हुआ? क्यों तालिबानी लीडर अरब होते रहे? ओसामा न अफ़गान न पाकिस्तानी, किसने बनाया उसको..अमरीका ने, सऊदी ने, ज़िया ने, इतनी बंदूकों और एकदम नए खतरनाक असलहों का पैसा कहाँ से आया. सारे कैम्प पाकिस्तान में कैसे लगे..कहने की ज़रूरत नहीं.
तालीम शुरू हुई मासूमों को वहाबी, खूनी, जंगी और आतंकी जिहादी बनाने की “ एह मदरसे, दानिशकदे, इल्म-ओ-हुनर के मयकदे , इनमे कहाँ से आ गए , यह कर्गसों के घोसले” ( सरदार जाफ़री…. करगस-गिद्ध ) तो आ गए करगस..और इनको इसी दारुल उलूम देवबंद, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, इंडिया से वैचारिक मदद मिली.

यह वहाबी फैलने लगे ज़हर की तरह, डसने लगे नाग की तरह.

सोवियत फौजें भी गयीं और सोवियत संघ भी धराशायी हुआ. अब दुश्मन कौन? यह ओसामा, तालिबान और वहाबियत भस्मासुर बन गए. कभी अमरीका पर बरसे तो कभी खुद अफगानिस्तान पर. और आखिर पाकिस्तान…

अब वहाबियों ने रूप दिखाया इस्लाम के तमाम गैर वहाबी फिरकों को इअलाम से ख़ारिज करने का

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