बुद्ध और वर्णव्यवस्था – कॅंवल भारती
डा. भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने अपने एक व्याख्यान में कहा है कि एक समय उन्हें गीता पर बहुत श्रद्धा थी। तब वह उसके दूसरे अध्याय के अट्ठारह श्लोकों का पाठ करके ही सोया करते थे। पर, एक बार उन्होंने कलकत्ता के धर्म-राजिक हाल में स्वामी सत्यदेव परिव्राजक को यह कहते सुना कि ‘यदि किसी भी धर्म के, किसी अनुयायी की, कभी यह इच्छा हुई हो … Continue reading बुद्ध और वर्णव्यवस्था – कॅंवल भारती