मैं हूं – Mrityunjay Prabhakar

                गेहूं की बालियों मटर के दानों चावल की बोरियों आलू के खेतों में बनमिर्ची के झुरमुटों आम के दरख्तों जामुन की टहनियों अमरूद के पेड़ों में गांव की गलियों खेतों की पगडंडियों सड़कों के किनारों शहरों की परिधि में रात की चांदनी सहर के धुंधलके शाम की सस्ती चाय दोपहर के सादे भोजन में साइबरस्पेस के किसी … Continue reading मैं हूं – Mrityunjay Prabhakar

लड़कियाँ – मृत्युंजय प्रभाकर

लड़कियाँ हमारे बचपन में किसी पोशीदा राज की तरह होती थीं लड़कियाँ उनके संसार में वर्जित था हम लड़कों का प्रवेश भले ही वो हमारी बहनें ही क्यूँ न हों उनका होना हमारे लिए किसी अचरज का होना था जैसे किसी और ही ग्रह से थीं वे लड़कियाँ उनके खेल अलग किस्से अलग और विस्मित कर देने वाली मुस्कान भी अभी-अभी रो रही होतीं और … Continue reading लड़कियाँ – मृत्युंजय प्रभाकर