भाषा का फासीवाद- अपूर्वानंद
भाषा का कार्य न तो प्रगतिशील होता है और न प्रतिक्रियावादी, वह मात्र फासिस्ट है: क्योंकि फासिज़्म अभिव्यक्ति पर पाबंदी नहीं लगाता, दरअसल वह बोलने को बाध्य करता है. रोलां बार्थ का यह वक्तव्य पहली नज़र में ऊटपटांग और हमारे अनुभवों के ठीक उलट जान पड़ता है. हम हमेशा से ही फासिज़्म को अभिव्यक्ति का शत्रु मानते आए हैं. लेकिन बार्थ के इस वक्तव्य पर … Continue reading भाषा का फासीवाद- अपूर्वानंद