आग जलती रहे- दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar)

    एक तीखी आँच ने इस जन्म का हर पल छुआ, आता हुआ दिन छुआ हाथों से गुजरता कल छुआ हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा, फूल-पत्ती, फल छुआ जो मुझे छुने चली हर उस हवा का आँचल छुआ … प्रहर कोई भी नहीं बीता अछुता आग के संपर्क से दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में मैं उबलता रहा पानी-सा परे हर तर्क से एक … Continue reading आग जलती रहे- दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar)