कुछ मकान बूढ़े हो जाते हैं – Mayank Saxena
कुछ मकान बूढ़े हो जाते हैं जब तो दरकने लगते हैं दरकते मकानों को रास नहीं आती मरम्मत पुताई लेकिन वो करवाता जाता है ये सब कुछ सिर्फ इसलिए कि बचा रहे वो देता रहे लोगों को आसरा मानते रहें लोग उसका अहसान बने रहें शरण में कहते रहें देखो असल तो पुराना ही है नया तो बेकार है कभी लगता है समाज… कहीं कोई … Continue reading कुछ मकान बूढ़े हो जाते हैं – Mayank Saxena