मैं हूं – Mrityunjay Prabhakar

                गेहूं की बालियों मटर के दानों चावल की बोरियों आलू के खेतों में बनमिर्ची के झुरमुटों आम के दरख्तों जामुन की टहनियों अमरूद के पेड़ों में गांव की गलियों खेतों की पगडंडियों सड़कों के किनारों शहरों की परिधि में रात की चांदनी सहर के धुंधलके शाम की सस्ती चाय दोपहर के सादे भोजन में साइबरस्पेस के किसी … Continue reading मैं हूं – Mrityunjay Prabhakar

मुर्दों के खिलाफ – Mayank Saxena

कुछ लोग ज़िंदा थे कुछ लोग थोड़ा कम ज़िंदा कुछ थोड़ा ज़्यादा ज़िंदा इन बहुत थोड़े लोगों के इर्द गिर्द इकट्ठा थे बहुत सारे मुर्दा लोग कुछ मुर्दा कुछ थोड़े कम मुर्दा कुछ… थोड़े ज़्यादा मुर्दा ज़िंदा लोग बहुत ज़्यादा ज़िंदा लोग थोड़ा कम ज़िंदा लोग लड़ते रहे मुर्दा होने तक मुर्दों के खिलाफ ज़िंदगी भर लगे रहे मुर्दों को जिलाने में कुछ को कम … Continue reading मुर्दों के खिलाफ – Mayank Saxena