जो रोहित ने नहीं कहा – Apoorvanand

  “मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया। अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने के मेरे इस फैसले के लिए कोई और ज़िम्मेदार नहीं है। मुझे किसी ने उकसाया भी नहीं है, न ही अपने लफ़्ज़ों से और न ही हरक़तों से। यह मेरा फैसला है और इसके लिए पूरी तरह से मैं ज़िम्मेदार हूं। मेरे दोस्तों और दुश्मनों को, मेरे जाने के बाद परेशान न किया जाए।” रविवार … Continue reading जो रोहित ने नहीं कहा – Apoorvanand

त्रिलोकपुरी के कुछ सवाल

First Published in Kafila त्रिलोकपुरी की हिंसा की व्याख्या तरह-तरह से करने की कोशिश हो रही है. जो बात साफ है, वह यह कि हिंसा रोकी जा सकती थी, अगर प्रशासन ने वक्त पर सख्ती की होती. लेकिन दिल्ली में दीपावली के आस-पास जैसे कोई प्रशासन नहीं था.गनीमत यह थी कि त्रिलोकपुरी में रोड़ेबाजी तक ही हिंसा सीमित रही और दूसरे हथियारों का इस्तेमाल नहीं … Continue reading त्रिलोकपुरी के कुछ सवाल

भाषा का फासीवाद- अपूर्वानंद

भाषा का कार्य न तो प्रगतिशील होता है और न प्रतिक्रियावादी, वह मात्र फासिस्ट है: क्योंकि फासिज़्म अभिव्यक्ति पर पाबंदी नहीं लगाता, दरअसल वह बोलने को बाध्य करता है. रोलां बार्थ का यह वक्तव्य पहली नज़र में ऊटपटांग और हमारे अनुभवों के ठीक उलट जान पड़ता है. हम हमेशा से ही फासिज़्म को अभिव्यक्ति का शत्रु मानते आए हैं. लेकिन बार्थ के इस वक्तव्य पर … Continue reading भाषा का फासीवाद- अपूर्वानंद