गुरमीत राम रहीम केस में मीडिया जिस तरह सीबीआई स्पेशल कोर्ट के जज जगदीप सिंह को हीरो बना रहा है, उससे मुझे चिंता हो रही है। इसमें कोई शक नहीं जज साहब का फैसला साहसिक और सराहनीय है।

लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे कोई क्रिकेटर नहीं है, जिसने सेंचुरी लगाकर जीत दिला दी और इस कामयाबी का जश्न मनाते हुए मीडिया उसकी निजी जिंदगी पर बात करने लगे। न्यायपालिक से जुड़े लोग संविधान के रखवाले होते हैं। उनका पब्लिक फिगर बनना ना तो उनके लिए अच्छा होता है और ना ही उन संस्थाओं के लिए जिनसे वे जुड़े होते हैं। मीडिया और लाइम लाइट से वे जितना दूर रहें उतना ही बेहतर है।
एक व्यक्ति के रूप में जगदीप सिंह और उनका फैसला दोनो अलग-अलग चीजें हैं। बात सिर्फ फैसले की होनी चाहिए। मैं देख रहा हूं कि मेन स्ट्रीम मीडिया के बाद अब सोशल मीडिया पर भी जगदीप सिंह की जय-जयकार शुरू हो गई है। कुछ लोग उनका फैमिली फोटो शेयर कर रहे हैं, जो मेरे हिसाब से सीधे-सीधे निजता का हनन है। जगदीप सिंह को लेकर चर्चा ज़रूरत से ज्यादा आगे बढ़ी तो मुमकिन है, दूसरा पक्ष कपोल-कल्पित कहानियां लेकर सामने आ जाये और फिर बकायदा ट्रोलिंग का दौर शुरू हो जाये।
आखिर सांवैधानिक पदों पर बैठे गैर-राजनीतिक लोगो को कीचड़ से बचाये रखने की जिम्मेदारी किसकी है? यकीनन यह दायित्व मेन स्ट्रीम मीडिया को उठाना पड़ेगा। राम रहीम मामले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग मोटे तौर पर ठीक रही है। इसलिए उम्मीद बंधती है कि संपादक इस बात पर ध्यान देंगे कि जज साहब के जजमेंट से इतर उनपर ज्यादा बातें ना हों।