आपको लगता है कि चुनाव में लोकतंत्र की जीत हुई है? सीएम की निंदा करने पर एफआईआर और गिरफ्तारियां हो रही हैं…चुनाव में हमेशा लोकतंत्र ही नहीं जीतता है। जर्मनी में पहली बार हिटलर भी चुनाव जीत कर ही आया था। इमरजेंसी के पहले, इंदिरा गांधी भी चुनाव जीत कर ही आई थी। परवेज़ मुशर्रफ ने भी चुनाव जीते थे। ट्रम्प ने भी जीता है। तमाम मौके ऐसे आए हैं, जब जनता ने लोकतंत्र की जगह फासीवाद या तानाशाही का चुनाव किया है।

कम लिखे को ज़्यादा समझिएगा…लोकतंत्र जनता की समझ और उसकी आज़ादख़्याली से आता है…चुनाव या चुनने का अधिकार ही लोकतंत्र नहीं है…चुनाव और चुनने की समझ, लोकतांत्रिक मूल्यों की समझ, समानता के अधिकार में विश्वास से लोकतंत्र आता है। इतिहास में तमाम ऐसे मौके आए हैं जब जनता को बाद में अपने चुनाव पर शर्मिंदगी हुई है…ये भी ऐसा ही मौका है…आप सोचिएगा कि आप ने किन लोगों को वोट दिया है…लोकतांत्रिक ढंग से आप अलोकतांत्रिक लोगों को चुनते हैं और फिर वे उसी लोकतंत्र की दुहाई देते हुए, लोकतांत्रिक अधिकारों का ख़ात्मा कर देते हैं…लोकतंत्र मज़बूत होगा, लेकिन सिर्फ चुनाव से नहीं…समझदारी भरे चुनाव से…लोकतंत्र कोई संसद नहीं, विधानसभा नहीं बल्कि लोक है…यानी कि आप…जैसा लोक होगा, वैसा ही उसका तंत्र…
फिलहाल आप ने जो चुना है, उसका मज़ा लीजिए…याद रखिएगा, आग कभी किसी की पालतू नहीं होती…वह जितना दूसरों को जलाती है, उतना ही आपके हाथ भी…आज आपने दूसरों को जलाने के लिए आग पाली है…ये लोग आपके साथ तभी तक अच्छे हैं, जब तक आप इनकी हां में हां मिलाते रहेंगे…जिस रोज़ आपने लोकतंत्र में वोटिंग के अलावा अपने दूसरे अधिकार, यानी कि इनकी समीक्षा और निंदा शुरु की…आपके साथ भी वही होगा, जो दूसरों के साथ हो रहा है…इसलिए मुस्कुराइए मत…सोचना शुरु कीजिए…

लोकतंत्र का रास्ता आपकी सोच से हो कर जाता है…सत्ता के बाहुबल से नहीं…
और हां, अब गुंडों से डरना बिल्कुल छोड़ना होगा…समझदार, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्षता की हार नहीं होती है…समझदार, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष लोगों की हार होती है, क्योंकि वह चुप रहते हैं और सुकून की ज़िंदगी जीते रहते हैं…सोचिएगा कि आप अपने बच्चों को हाथ कौन सी दुनिया सौंप कर जाने वाले हैं…