आर्यावर्त का सोशल मीडिया – Rakesh Kayasth

एविएशन, स्टेम सेल और प्लास्टिक सर्जरी जैसे सभी आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के चिन्ह हमारी महान सभ्यता के इतिहास में मिलते हैं। लिहाजा तर्क यही कहता है कि जुकरबर्ग के पैदा होने से कई कोटि वर्ष पहले सोशल मीडिया भी भारत में रहा होगा। प्रस्तुत हैं, इसी तर्क पर आधारित कुछ पौराणिक कथाएं, देवताओं और पौराणिक पात्रों को सो सॉरी हैशटैग के साथ।
Rakesh Kayasth
1.
अप्सरा शकुंतला प्रतिदिन अपनी एक नूतन नयानाभिराम छवि मुख पुस्तिका पर पोस्ट करती थी। मुख पुस्तिका वही प्रणाली थी, जो आजकल फेसबुक कहलाती है। शकुंतला की छवि को देखकर अनगिनत लोग साधु-साधु अर्थात लाइक करते थे। लेकिन शकुंतला एट पैक वाले दुष्यंत को लाइक करती थी। प्रेम में खोई अप्सरा भूल गई कि उस जमाने के एंग्री ओल्डमैन यानी ऋषि दुर्वासा ने भी आध्यात्म वाला अपना एक पेज बनाया है और उसके पास लाइक करने का आग्रह भेजा है। ऋषि का रिक्वेस्ट अप्सरा के द्वार पर भिक्षुक की भांति पड़ा रहा और वो दुष्यंत के साथ अपनी उष्ण छवियां प्रेषित करने में लगी रही। क्रोधित होकर दुर्वासा ने ऐसा शाप दिया कि दुष्यंत की मति फिर गई और वह मुख पुस्तिका छोड़कर ईष्ट ग्राम नामक दूसरी प्रणाली की ओर प्रस्थान कर गया, जहां अनेक सुंदरियां पहले से थी। विरहणी शकुंतला ने मैत्री आग्रह भेजा लेकिन दुष्यंत ने उसे पहचाना ही नहीं। रोती कलपती शकुंतला ने दुर्वासा के चरण पकड़े। ऋषि की कृपा से दुष्यंत को सद्दबुद्धि आ गई। उसने शकुंतला को पहचान लिया, दोनो बीइंग टुगैदर हैशटैग के साथ पुन: मुख पुस्तिका पर वापस आ गये।
2.
भातृ भक्त लक्ष्मण जी का जीवन वनवास के दिनों में बहुत कठिन था। प्रात: उठना, लकड़ियों और कंद-मूल के लिए दिनभर वन-वन भटकना, गृह-कार्यों में सीता माता का हाथ बंटाना और शाम को बड़े भाई के चरण दबाना। कहने की आवश्यकता नहीं कि जीवन पूरी तरह मनोरंजन रहित था। उस भयंकर अरण्य में कुछ भी ना था, सिवाय नेटवर्क के जो फोर जी से भी ज्यादा गतिमान था। एक दिन वन में लकड़ी काट रहे लखन लला को उनके चलित संवाद यंत्र ने संकेत दिया। यंत्र के पटल पर त्वरित मिलन प्रणाली अर्थात त्रेता के टिंडर के माध्यम से आया था एक अपूर्व सुंदरी का संदेश– हे आर्यवीर इस विकट वन में अकेली हूं। असुरों और नाना प्रकार के वन्य जीवों का भय है। भागकर आओ, इस अबला के प्राण बचाओ। लखनलला जीपीआरएस ऑन करके चल पड़े। गंतव्य पर पहुंचने पर पता चला कि ये टिंडर में दिखाई गई छवि नहीं है। उबड़-खाबड़ दांतों वाली शूर्पनखा हंसकर बोली—सोचा था, तुम्हारे संग पहले दो चार तिथियां मनाउंगी लेकिन हे वीर पुरुष अब तो सीधे विवाह ही रचाउंगी। लखनलला ने हाथ जोड़े, अपने विवाहित होने का हवाला दिया। लेकिन शूर्पनखा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुई। जान बचाने के लिए लखनलला ने कहा—मैं तुम्हे एक मनोहरी पुष्प भेंट करना चाहता हूं। फूल लाने के बहाने लखनलला गये तो लौटकर आये ही नहीं, अपना मोबाइल फोन भी ऑफ कर दिया। दो दिन बाद उन्होने जब मोबाइल फोन ऑन किया तो उनके होश उड़ गये। कटी नाक वाली शूर्पनखा की छवि चहुं दिशा में फैल चुकी थी और दोषी उन्हे ठहराया गया था। लखनला समझ गये कि ये लंका में बैठे फोटो शॉप वाले असुरो का किया धरा है, आर्यपुत्र कभी नारी का अपमान कर सकते हैं भला? फोटो शॉप से त्रेता में लखनलला पर चिपकाया गया आरोप कलियुग में आकर भी मिटा नहीं है, कुछ ऐसी थी आर्यावर्त के सोशल मीडिया की ताकत।
3
कृष्ण ने अपने चार हाथ और तीन आंखों वाले फुफेरे भाई को प्यार से गोद में उठाया तो वो शापमुक्त होकर सामान्य बच्चे की तरह हो गया। कृष्ण ने अपने भाई शिशुपाल को पुचकारा और बदले में उसने एक तगड़ी गाली दी। कृष्ण की बुआ यानी शिशुपाल की मां को आकाशवाणी याद आई— जो तुम्हारे बच्चे को शापमुक्त करेगा, वही वध भी करेगा। बुआ ने कहा बेटा ऐसा मत करना। कृष्ण ने गंभीर स्वर में कहा—बुआ तुम्हारा ये बेटा आगे चलकर ट्रोल बनेगा। मैं इसका वध तो नहीं करूंगा लेकिन इसे ब्लॉक कर दूंगा। बुआ ने कहा— अनफ्रेंड कर देना बेटा,अपनो कोई ब्लॉक नहीं करता। कृष्ण ने कहा—ठीक है बुआ, मैं 100 बार मैं इसकी गलतियां माफ करूंगा। लेकिन 101 बार इसने कुछ किया तो सीधा ब्लॉक कर दूंगा। बुआ मान गईं। बड़े होते ही शिशुपाल ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये। फेसबुक से लेकर ट्विटर तक वह हर जगह कृष्ण का पीछा करता। हर पोस्ट हर ट्ववीट पर भद्धे कमेंट करता था। रूक्मिणी के टाइमलाइन पर जाकर यू आर माई फेवरेट भाभी लिखता और साथ राधाजी को भी टैग कर देता। कृष्ण चुपचाप सहते रहे। लेकिन जैसे शिशुपाल ने 101 बार धृष्टता की, भगवान ने अपना स्लीक सुदर्शन मोबाइल उठाया और बोले—जा तुझे मैं ब्लॉक करता हूं। इसके बाद परिदृश्य से शिशुपाल का नाम हमेशा के लिए मिट गया जिसे वेदव्यास जी ने वध की संज्ञा दी है।

Leave a comment