जेएनयू में बापसा और वाम को स्वाभाविक, सहयोगी और मित्र होना चाहिए – Pradeep Sharma

 

BAPSA को जिताने की ज़िम्मेदारी लेफ़्ट की नहीं थी. लेफ्ट का प्लैटफ़ॉर्म संघविरोधी है, ब्राह्मणवाद विरोधी ,जातिवाद विरोधी था और लोकतंत्र की रक्षा के लिए है, जिसके लिए उसने सभी के साथ मिलकर जुझारू संघर्ष किया और संघ पर चोट करते हुए उन्होंने जीत हासिल की.
पूरे देश के पैमाने संघी ब्रिगेड द्वारा दलितों, अल्पसंख्यको और वंचित तबको को निशाना बनाया है और जिसके खिलाफ पूरे देश में जबरदस्त प्रतिरोध भी हुआ है , इस प्रतिरोध में युवायों ने अति महतवपूर्ण भूमिका अदा की है और उसमे भी jnu ने हिरावल दस्ते के भूमिका निभाई है …Occupy UGC, IIT Madras , रोहितबेमुला की संस्थागत हत्या , दादरी, दनकौर का सवाल रहा हो या कलबुर्गी , पंसारे की हत्या के प्रतिरोध का Jawahar Lal Nehru University के छात्रों ने तीखा प्रतिरोध किया है. पूरे देश के पैमाने पर जो उन्मादी माहोल बनाया गया था और मुख्य निशाना JNU था जिसकी गंभीरता समझते हुए वामछात्र संगठनो ने मिल कर एक जुझारू लड़ाई लड़ी और jnu से इस प्रतिगामी abvp के सफाए के लिए साथ मिलकर चुनाव लड़ने का अति महतवपूर्ण फैसला लिया , जिसके पीछे चुनाव जीतने की तात्कालिक सोच न होकर प्रतिरोध और सवालिया संस्कृति की रक्षा की सोच प्रमुख थी . इस सोच के आधार पर SFI और AISA ने साँझा पैनल बनाकर JNU में चुनाव लड़ा और JNU के अन्दर abvp की ऐतिहासिक हार की इबादत लिखी .
इस चुनाव में मुद्दे सिर्फ दो the jnu का पक्ष या jnu का विरोध ..येही सारी स्थिति बापस के लिए भी थी पर उन्होंने jnu से ज्यादा महत्व अपनी जीत को दिया ..
.लेफ्ट ने पूरे चुनाव अभियान में अपना निशाना abvp और संघी ब्रिगेड को बनाया लेकिन अफ़सोस यह है की BAPSA ने अपना हमला लेफ्ट पर केन्द्रित रखा, लेफ्ट के लोगो की जाति को आधार बनाकर लेफ्ट को निशाना बनाया गया ..
जो लोग BAPSA को लेकर LEFT पर हमला कर रहे हैं मेरा उनसे अग्रेह है की थोडा सा अंतर कीजिये ब्राह्मणवादी होने का सम्बन्ध जाति से नहीं सोच और विचारधारा से है …वैसे वामपंथ इस दिशा में भी लगातार प्रयास कर रहा है की नेत्रत्व में वोही लोग आगे आये जिनके सवालों पर संघर्ष प्रमुखता से होते हैं ,,, दलित , अल्पसंख्यक , महिलाएं , आदिवासी , पिछड़े वर्ग को नेत्रत्व में प्राथमिकता में रखना पिछले काफी समय से वामपंथ करता आ रहा है , इसलिए आंकलन भी थोडा खुले दिमाग से हो तो बेहतर रहेगा , जाति का चश्मा सच को धुंधला कर देता है , शायद इस लिए उन्हें नहीं पता की SFI का राष्ट्रीय महासचिव विक्रम दलित समुदाय से आता है..
और अंतिम बात
जेएनयू में बापसा और वाम को स्वाभाविक, सहयोगी और मित्र होना चाहिए, जिससे व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव हो सके …
मिलकर ही सांप्रदायिक-फ़ासिस्ट चुनौती को परास्त कर सकते हैं! इनकी जगह आमने_सामने न होकर साथ -साथ ही होनी चाहिए!
जय भीम – लाल सलाम …..

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