सवर्णों को जाति के नाम पर नफरत बंद करने का सबक देने के लिए ओबामा या पुतिन नहीं आएंगे. समाज सुधार के लिए यहीं पर किसी को यह काम करना होगा.


सवर्ण बुध्दिजीवी, चिंतक, एक्टिविस्ट यह करने को तैयार नहीं हैं.
गांधी की तरह वे भी “हरिजनों” को ही जगाना चाहते हैं. हरिजन जाग – जाग कर परेशान है. इतना सामाजिक जागरण हुआ है कि वह अनिद्रा रोग का शिकार हो गया है.

जिसे देखिए, वही जागरण करने लगता है.

मैं दलित और ओबीसी एक्टिविस्ट और चिंतकों से अपील करूंगा कि वे ऊंची जातियों के सम्मेलनों में जाएं और उन्हें बताएं कि जातिवाद कितनी बुरी चीज है. जाहिर है, कि वहां उनका स्वागत किया जाएगा.
हालांकि सवर्णों के समाज सुधार का यह काम सवर्ण जाति के प्रगतिशील लोगों को करना चाहिए लेकिन उन्हें अपने लोगों के बीच जाना पसंद नहीं.
इसलिए सवर्णों का समाज सुधर नहीं रहा है.
जाति किसने बनाई? जाति व्यवस्था के शिखर पर कौन बैठा है. जाहिर है ब्राह्मण और ऊंची जातियां. लेकिन कोई भी उनके बीच जागरण नहीं कर रहा है. समाज सुधार की जरूरत इन्हें है.
समस्या की जड़ ये हैं.
और समाज सुधार कहां हो रहा है?
दलितों के बीच. पिछड़ों के बीच. यह चलन गांधी ने शुरू किया था. जाति मिटाने के लिए वे भंगी बस्ती में रहने जाते थे.