मनु जी तुमने वर्ण बना दिए चार !
जा दिन तुमने वर्ण बनाये, न्यारे रंग बनाये क्यों ना ?
गोरे ब्राह्मण, लाल क्षत्री, बनिया पीले बनाये क्यों ना ?
शूद्र बनाते काले वर्ण के, पीछे का पैर लगाये क्यों ना ?
-अछूतानंद

स्वामी अछूतानंद के इस सवाल का जवाब तो ब्रह्मा भी नहीं दे सकते, लेकिन ब्रह्मा के मुँह, भुजा, जंघा और पैर से पैदा होने की बकवास सैद्धांतिकी न जाने कितने कथित सवर्णों के जीवन संचालन की व्यवस्था है। आदमी से इंसान बनने की राह में ‘जाति’ पर चिपक कर रह गये लोगों की अवस्था ऐसी ही है जैसे वानर से नर बनने की प्रक्रिया में एक प्रजाति चिंपांजी बनकर रह गई। ये समझ ही नहीं सकते कि एक मुक्त मनुष्य होने का अर्थ और स्वाद क्या है।
बहरहाल, जिन्हें यह बात समझ मे आ रही है उनके लिए अहमदाबाद से ऊना पहुँच रहा ‘आज़ादी कूच’ एक अवसर है। वे जहाँ भी हैं, इसका स्वागत करें और 15 अगस्त के सूरज में मुक्ति का नया रंग भरें। ऊना ने एक सामाजिक क्रांति का आग़ाज़ किया है जो सच्चे मायने में देश को आज़ाद कराएगी। गुजरात की इस अगस्त क्रांति में अनंत संभावनाएँ छिपी हैं। पहली बार हज़ारों-हज़ार दलित शपथ ले रहे हैं कि वे न गाय की चमड़ी उतारेंगे और न गंदगी साफ़ करेंगे। गरिमापूर्ण जीवन के लिए वे सरकारी ज़मीन पर भी दावा कर रहे हैं, जो अस्मितावादी आंदोलनों के लिहाज़ से बिलकुल नई बात है। अगर कथित निचली जातियों ने ‘नीचे’ काम करने से इंकार कर दिया, तो फिर ऊँचे लोगों की ‘ऊँचाई’ भरभरा कर ढह जाएगी।

इसलिए गुजरात की इस ‘अगस्त क्रांति’ में दलितों की ही नहीं, सवर्णों की मुक्ति का अवसर भी है। याद कीजिए मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में 28 अगस्त 1963 को निकला ‘मार्च ऑन वाशिंगटन’। बड़ी तादाद में श्वेत स्त्री-पुरुषों ने अश्वेत भाइयों का हाथ पकड़कर जुलूस में हिस्सेदारी की थी। इसने अमेरिका को निर्णायक रूप से बदल दिया था। मार्टिन लूथर किंग ने इसी में अपना मशहूर भाषण दिया था-“आई हैव अ ड्रीम.”..जो पूरी दुनिया में मुक्ति का गान बन गया।
हे सवर्ण भाइयों, आओ नए भारत के सूर्योदय का स्वागत करें। आदमी से इंसान बनने का मौक़ा हाथ से जाने न दें ! मनुष्यता के मोर्चे पर मिलकर रक्त बहायें ताकि हम सबमें ख़ून का रिश्ता बन सके ! याद रखो, समता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है !
जय भीम..! लाल सलाम !