पंच हुए बेईमान,
दिया वरदान
बने हैं ठग
देखो परधान
राजा है अनजान
प्रजा परेशान
शरम से झुक्का
हिंदुस्तान
तर्क की होती हार
है बंटाधार
हुआ अंधों का
बेड़ापार
रात हुई घनघोर
मचा है शोर
करे है
मन की बात से बोर
भक्तों की पहचान
है गालीदान
बड़े जन करते
चारणगान
जंगल में है सोग
है फैला रोग
करे है डाकू
संत को ढोंग
पढ़ी किताबें चार
बने होशियार
लगावो इनको
ज़रा किनार
बोलो तो ज़िंदान
या कब्रिस्तान
धर्म था बूढ़ा
हुआ जवान
हाथ में ले तलवार
चले हैं यार
ढूंढता सच है
कंधे चार
खाने को न दाल
खींच ली खाल
मगर परधान के
गाल हैं लाल
कर के जब जलपान
उठे बलवान
जवानी मचले
करे धंसान
करें कलेवा खेत
चलावें बेंत
लंच में नदी
डिनर में रेत
बेच गए सरकार
दरो-दीवार
जंगल ओ सागर
बड़ी डकार
किया बाण संधान
बना शमशान
देख कर
डरे राम-रहमान
अम्बानी है बाप
अडानी खाप
भगत करें
जय विकास का जाप
भूखा गुरबा रोए
है भूखा सोए
है आंसू सींचे
धोखा बोए
महंगाई विकराल
बजा कर गाल
परधाना नाचे
दे दे ताल
अपने जो परधान
घर में मेहमान
उड़े हैं पुष्पक
रोज़ विमान
गाओ रोदन गान
कीरतन ध्यान
विदेसा घूमे
शक्तिमान
धन-धन राजा-राज
दुंदुभी बाज
चलावे हाथ
दिखा अंदाज
कह दे जो परधान
वही फरमान
वही है गीता
और पुरान
सुनो ‘भागवत’ ज्ञान
यही अरमान
झुकावो गर्दन
देस महान









