प्रिय FTII Wisdom Tree के साथियों,
आपने अपनी हड़ताल खत्म कर दी है…कहा है कि आंदोलन जारी रहेगा…अच्छा किया है, मैं एक हद तक सहमत हूं…लेकिन एक सवाल है…जो मन में कौंध रहा है…सोचा कि सबसे साझा करूं…
पिछले लगभग डेढ़ सौ दिनों में देश भर के लेखक-साहित्यकार-फिल्मकार ही नहीं…आम छात्र…क़ॉलेज-विश्वविद्यालय…और लोग… FTII Film Institute Pune के छात्रों के समर्थन में न केवल आए…बल्कि खुलकर आए…देश भर में प्रदर्शनों से लेकर रैलियों, मोर्चों और कार्यक्रमों का आयोजन हुआ…हम सभी का सक्रिय योगदान रहा…चाहें वह लिखने-पढ़ने-बोलने-बनाने से हो…या फिर सड़क पर उतर कर…
यह सब क्यों था…एफटीआईआई के मूल चरित्र को बिगाड़ने की सरकारी कोशिशों के खिलाफ लड़ रहे, छात्रों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए…जिसे अंग्रेजी में Solidarity कहते हैं…सवाल पर सीधे आ जाता हूं…
कि क्या क्लासरूम में लौट जाने के बाद, अभी तक अपने साथ खड़े हो कर लड़ते रहे तमाम और लोगों और खासकर छात्रों की लड़ाई में Ftii Pune के छात्र वही एकजुटता दिखाएंगे…जो हम सबने उनके साथ दिखाई??? क्या वाकई Solidarity, एफटीआईआई के छात्रों के लिए एक व्यापक शब्द है…या फिर ज़रूरत के सापेक्ष, अपनी लड़ाई में उचार लिए जाने वाला…
ये इसलिए कह रहा हूं…क्योंकि दिल्ली समेत देश में Occupy_UGC के लिए छात्र लाठी खा रहे हैं…और इंतज़ार कर रहे हैं कि एफटीआईआई से भी कोई आवाज़ उठे…जो बताए कि ये एकजुटता सिर्फ अपनी लड़ाई तक सीमित नहीं थी…
प्रिय एफटीआईआई के साथियों, आप क्लास में जाकर हमको अगली लड़ाई तक, फिर से तो नहीं भूल जाएंगे न?
इस सवाल के साथ भी आपको हम यह यकीन दिलाते हैं, कि आप आएं, या हमको ऐसे ही फिर से सड़क पर छोड़ कर, अबौद्धिक, अकलात्मक, अरचनात्मक मान कर भूल जाएं…हम ये लड़ाई भी लड़ते रहेंगे…और आपकी हर लड़ाई में साथ देंगे…सब कुछ फिर से हमेशा की तरह भूल कर…हम सृजन कर पाएं या नहीं…पर पुराने के विध्वंस से उसका कैनवस हम ही तैयार करेंगे…हम आंदोलनकारी हैं…मजदूर किसान और छात्र हैं…हम हमेशा आपके लिए लड़ेंगे…और उस दिन का इंतज़ार करेंगे, जब आप भी हमारे साथ हो…हमारी लड़ाई का हिस्सा बन कर…
आपका हमेशा से रहा मित्र…साथी…कामरेड…
मयंक सक्सेना
और बहुत सारे साथी, जो लाठियां खा कर भी दिल्ली में लड़ रहे हैं…