दिल्ली में ‘विवेक के हक़ में’ बड़ी जुटान, फासीवाद के खिलाफ एलान-ए-जंग!

pansare_dabholkar_kalburgi_fanaticsकट्टरपंथ जब अपने पाँव पसारता है, सबसे पहले बदलाव की बात करने वालों को ही कुचलता है। समय की बीहड़ता ही है कि इस कथन को समझने के लिए अब हमें इतिहास से उदाहरण लेने की जरूरत नहीं बची। पिछले दो सालों के भीतर ही हमारे 3 लेखकों को मारा जा चुका है। फासीवाद, जिसकी बात हम लगातार करते आये हैं, अब खुलकर हमारे सामने है और किसी राज्य में मुख्यमंत्री है तो आज देश का प्रधानमंत्री भी वही है।

विवेक के हक़ में 2दाम्भोलकर, पानसरे के बाद कट्टरपंथियों द्वारा अब डॉ कलबुर्गी की हत्या हुई तो हम सबने महसूस किया कि अब पानी सर से ऊपर जा चुका है। हम सबने महसूस किया कि अब जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संस्थागत ढंग से हत्या की जा रही है और सरकारें ख़ुद इन हत्याओं को प्रायोजित कर रही हैं तो ऐसे में क्या हम लेखक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी और सभी तरक्कीपसंद लोग एकजुट होकर उनका सामना नहीं कर सकते? डॉ कलबुर्गी की हत्या से उबल पड़े देशभर में सक्रिय आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच ,जन संस्कृति मंच, आइसा , एआईएसएफ, दिशा , अनहद , प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, सेक्युलर डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन, हिंसा के खिलाफ कला, सिनेमा ऑफ रजिस्टेंस, हमलोग, इप्टा, जनहस्तक्षेप, कविता 16 मई के बाद, प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन आदि 35 संगठन ‘विवक के हक़ में’ बैनर तले एकमत हुए और कॉमरेड अशोक कुमार पाण्डेय व कॉमरेड संजीव कुमार के संचालन में प्रतिरोध सभा की रूपरेखा तैयार की गयी। जिसका नतीज़ा यह रहा कि 5 सितम्बर का दिन कई मायनों में बड़ा दिन साबित हुआ। वक़्त की जरूरत को भांपते हुए हिंदी पट्टी के लेखक, संगठन आपसी-मतभेद भुलाकर जिस तरह एक हुए, वह भी मुखर होकर, वह भी बुलंद आवाज़ के साथ; यह अपने-आप में एक अभूतपूर्व घटना है। हिंदी पट्टी के लेखक अपनी छवि के विपरीत जाकर कंधे से कंधा मिलाते दिखे और सबने एकस्वर में प्रगतिशील लेखकों की हत्याओं के बहाने लिखने और बोलने पर लगाई जा रही पाबंदियों का पुरजोर विरोध दर्ज़ किया।

विवेक के हक़ में 3

जनवादी गीतों से लेकर भाषणों में संस्कृतिकर्मियों और वक्ताओं द्वारा बिना बीच का रास्ता ढूंढे सीधा-सीधा धार्मिक कट्टरपंथियों को पोसने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा जनित, फासीवादियों, कट्टरपंथियों की भाजपा सरकार और अवसरवादी कांग्रेस पार्टी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने और अपनी लेखनी के माध्यम से इन ताकतों का हर मोर्चे पर सामना किये जाने को लेकर प्रतिबद्धता स्पष्ट की गयी। तकरीबन 500 लोगों की उपस्थिति में आयोजित इस प्रतिरोध-सभा का हासिल ये माना जाना चाहिए कि लगभग 150 लेखकों, बुद्धिजीवियों , संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों के अलावा बाकि के सभी साथी आमजन थे जो प्रतिरोध-सभा में ‘विवेक के हक़ में’ लडाई को समर्थन देने के लिए शामिल हुए।

'विवेक के हक़ में'

प्रतिबद्धता का प्रतीक बने ‘विवेक के हक़ में’ प्रतिरोध-सभा के बाद अब हम सबकी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गयी है या कह सकते हैं कि इस प्रतिरोध-सभा की सफलता तब मानी जाएगी जब डॉ कलबुर्गी की हत्या के बाद प्रतिबद्ध होकर एकजुट हुए सभी लेखक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, संस्कृतिकर्मी एवं आमजन जंतर-मंतर में लगाई आग को देशभर में फैलायेंगे, ऐसी प्रतिरोध-सभाएँ होती रहेंगी और इसके लिए फिर किसी लेखक की हत्या होने का इंतज़ार नहीं किया जाएगा वरना यह प्रयास मात्र एक रसम-अदायगी के रूप में ही याद किया जायेगा।

 

‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’

‘विवेक के हक़ में’

देवेश

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