
मिथक 1 – तीस्ता सेतलवाड़ ने साम्प्रदायिक ताक़तों के खिलाफ लड़ाई 2002 में शुरु की।
तथ्य 1 – तीस्ता सेतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद ने अपनी पत्रिका, कम्युनलिज़्म कॉम्बेट 1992 में मुंबई दंगों के बाद शुरु की। 1992 में साम्प्रदायिक ताक़तों के खिलाफ उनकी मीडिया पक्षधरता की
शुरुआत हुई।
मिथक 2 – तीस्ता सेतलवाड़ ने सिर्फ गोधरा के बाद हुए दंगों के पीड़ितों के लिए क़ानूनी लड़ाई शुरु की। तीस्ता ने सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए काम किया है।
तथ्य 2 – तीस्ता सेतलवाड़ और उनकी टीम ने 2002 के गोधरा के पीड़ितों के केस भी लड़े हैं। उन्होंने गोधरा में रेल में मारे गए अनेक लोगों के लिए भी सतत लड़ाई की है।
मिथक 3 – गुलबर्ग सोसायटी (गुजरात) के सभी परिवारों ने तीस्ता सेतलवाड़ के खिलाफ वित्तीय गड़बड़ी का केस दायर किया है।
तथ्य 3 – गुलबर्ग सोसायटी के एक निवासी स्वर्गीय अहसान जाफ़री की विधवा, ज़किया जाफ़री ने अपने पति के हत्यारे दंगईयों के खिलाफ एक केस दायर किया है। इस मामले में उनकी सह-याचिकाकर्ता, तीस्ता सेतलवाड़ हैं। याचिका में तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप हैं।
तीस्ता सेतलवाड़ के खिलाफ गुलबर्ग सोसायटी के 12 सदस्यों के सिर्फ एक परिवार ने एफआईआर दर्ज करवाई है। वह गुलबर्ग सोसायटी के पदाधिकारी भी नहीं है, बल्कि यह शिकायत सोसायटी के चुराए गए लेटरहेड पर लिखी गई है। इस शिकायत को गुलबर्ग सोसायटी और उसके अन्य निवासियों द्वारा बाद में चुनौती भी दी गई।
मिथक 4 – ज़किया जाफ़री ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ केस वापस ले लिया है
तथ्य 4 – 27 जुलाई, 2015 से ज़किया जाफ़री केस में अंतिम सुनवाई शुरु हो रही है। तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद के खिलाफ सीबीआई की इस नई एफआईआर को उसी रोशनी में देखा जाना चाहिए (क्योंकि सीबीआई सीधे तौर पर पीएमओ के अंतर्गत आती है)। “अवैध विदेशी फंडिंग के मामले में सीबीआई ने तीस्ता सेतलवाड़ और उनके पति पर केस दर्ज किया।”
मिथक 5 – तीस्ता सेतलवाड़ ने गुजरात में क़ानूनी मदद के अपने काम से करोड़ों कमाए हैं
तथ्य 5 – सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। वह अभी भी सुरक्षा में हैं। गुजरात हाई कोर्ट के अंतरिम बेल को नकारने के एक घंटे के भीतर ही गुजरात पुलिस मुंबई में तीस्ता के घर पर उनको गिरफ्तार करने पहुंच गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक हिरासत की मांग को खारिज कर दिया।
टाइम्स ऑफ इंडिया कहता है, “सबरंग ट्रस्ट और सीजेपी, दोनों पर विदेशी फंडिंग प्राप्त करने का आरोप है, जो कि एससीपीपीएल को प्राप्त हुई थी। सूत्रों के अनुसार सबरंग ट्रस्ट को एफसीआरए 1976 और 2010 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए, लगभग 1 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। एजेंसी इस कम्पनी और बैंक खातों की जानकारी से जुड़े दस्तावेजों के अलावा एससीपीपीएल की गृह मंत्रालय की निरीक्षण रिपोर्ट और 2006-7 से 2014-15 तक के रेकॉर्ड्स का अध्ययन कर रही है।”
“सीबीआई जांच का आदेश देते हुए, एजेंसी से गृहमंत्री राजनाथ सिंह का संदेश था, “इस मामले की जटिलता और महत्व को देखते हुए और चूंकि इस मामले में शामिल धनराशि 1 करोड़ रुपए से अधिक है, सम्बंधित आधिकारिक संस्था द्वारा यह तय किया गया है कि इस मामले की गहनता से जांच की जाए। इसलिए सीबीआई से इस मामले की एफसीआरए 2010 के अनुच्छेद 43 से 45 के अंतर्गत जांच का अनुरोध किया जाता है।””
एक केस बेहद गंभीर है क्योंकि उसमें शामिल धनराशि 1 करोड़ रुपए से अधिक है, यह अपने आप में हास्यास्पद बात है, जबकि गृह मंत्री ने ही हाल में व्यापमं मामले की जांच सीबीआई को देने से इनकार कर दिया। शायद उनकी निगाह में व्यापमं मामला, 1 करोड़ से भी कहीं कम राशि का घोटाला है। अपने सारे संसाधन झोंक देने के बावजूद भी केंद्र सरकार 1 करोड़ रुपए की भारी-भरकम रकम का गंभीर मामला ही बना सकी है।
मिथक 6 – तीस्ता सेतलवाड़ ने ज़ाहिरा शेख को अदालत में झूठ बोलने को मजबूर किया।
तथ्य 6 – सुप्रीम कोर्ट ने ज़ाहिरा शेख को बेस्ट बेकरी केस में झूठ बोलने और बार-बार बयान बदलने के लिए सलाखों के पीछे भेजा। सुप्रीम कोर्ट मे तीस्ता को न्यायिक सुरक्षा दी।
जब तक कि हम कुछ और लिखें, अंतिम तथ्य,
तीस्ता, पहली और आखिरी व्यक्ति हैं, जिनकी लड़ाई ने 117 हत्यारों को जेल पहुंचाया, जिसमें से एक गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार की मंत्री भी थी। इस महीने की 27 तारीख को ज़किया जाफ़री मामले में अंतिम सुनवाई शुरु हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस मामले में मुख्य आरोपी हैं।
हिल्ले ले ने तीस्ता सेतलवाड़ का तब साक्षात्कार किया था, जब गुजरात हाई कोर्ट ने उनकी अंतरिम ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट उनको न्यायिक प्रतिरक्षा दी थी। आप तीस्ता का इस मामले पर यह साक्षात्कार देख सकते हैं,
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