Mayank Saxena

मैं लौटता हूं मगर लौट नहीं पाता – Mayank Saxena

मैं लौटता हूं
मगर लौट नहीं पाता
देखता हूं तो पाता हूं
कि उनमें से कोई नहीं है वैसा
जैसा छोड़ गया था मैं

Mayank Saxena
Mayank Saxena

पेड़ों की ऊंचाई घटती रही
और उसे पूरी करती रही बढ़ती ऊंचाई दीवारों की
दोस्तों ने कहा था कि यहीं मिलेंगे
और मिलते रहे वो अलग अलग शहरों में
कितनी ही कहानियों के किरदार बदल गए
और कहानियां भी
नहीं बदले हैं तो सिर्फ सड़कों के नाम
जो अब किसी को याद नहीं

एक करिश्मा सा लगता है बीता हुआ सब
और लगता है कि कुछ भी नया करिश्मा नहीं हो सकता
करिश्मा जीते हुए
दुआएं करते रहे हम किसी करिश्मे की
करिश्मे के बीतने के बाद हम बीनते हैं बिखरे तिनके
जोड़ते हैं करिश्मा
जिसके तिनकों में सिर्फ दीवारों का रंग है

किसी घर में नहीं बची कोई कड़ी खड़काने को
और घंटिया बजाने पर कोई बाहर नहीं आता
चिट्ठियां लिखने का रिवाज़ खत्म होते ही
मर गए अचानक सारे दूर के रिश्तेदार
और दोस्तों ने बदल डाले अपने बचपन के सारे नाम
एक दुकान जो अब बदल गई है एक फुटपाथ में
उस पर इकट्ठा यादें आपस में बात करती हैं
और पार्क की बेंचों के नीचे दफ़्न हैं
न जाने कितनी कॉर्क की गेंदें

लौटने पर कुछ भी तो ठीक से याद नहीं रहता
न किसी का पुराना पता
न अपना पुराना नाम
न तो एक भी पतंग गिरती है अब छत पर
न ही कोई परिंदा फंस झुलसता है किसी तार पर
कोई आवाज़ चार मोहल्लों को चीर किसी मैदान में नहीं गूंजती
और किसी कड़ाहें में खौलता दूध अब महकता ही नहीं

जब किसी ऐसे वक्त में जब बहुत याद आता है कुछ
तब लाख कोशिश करने पर भी
नहीं याद रहती उसकी शक्ल
बारिश के मौसम में इतना डर लगता है कीचड़ के छींटों से
कि घर से बाहर ही नहीं निकलता हूं मैं

और फिर किसी मजबूरी में जब लौटता हूं यहां
तो देखता हूं कि कोई नहीं जानता है मुझे सड़क पर
जो पीछे से आवाज़ दे कर बुला ले
और पूछ ही ले कि और…कहां हो आज कल
बिठा ले और कहे कि चाय बिना पीए नहीं जाओगे
प्यार दरअसल आदेश में था
अनुरोध में नहीं
स्टेशन से घर तक कोई हाथ नहीं हिलाता
फिर फिर लौटता हूं यहां
और पाता हूं कि कोई नहीं है यहां
चेहरे सड़कों पर चलते हैं
जिनकी आंखें चिपकी हैं
और होंठ सिले हुए
लफ्ज़ न भी होते तो मुस्कुराहट होती
और मैं फिर फिर पूछता हूं उनसे अपना नाम
जिनको ख़ुद का भी नाम याद नहीं अब

मैं फिर फिर लौटता हूं
लम्बी होती दीवारों
और छोटे होते पेड़ों के बीच
और फिर लौट जाता हूं वहां
जहां लोग मुझे किसी और शक्ल
और किसी और नाम से जानते हैं
ज़रूरी है कि लोग आपको जानते हों
क्योंकि कहां जानते हैं अब हम किसी को
उस शहर का नाम बदला नहीं गया कभी
क्यों लोग बदलते रहे अपना नाम
हमें अपने शहर से इतनी मोहब्बत है
कि हम फिर फिर लौटते हैं वहां
और भूल जाते हैं वो सारे पते
जहां जाने के लिए हम लौट आते हैं फिर फिर
ये दुनिया अगर कोई जगह है
तो मैं यहां कभी लौटना नहीं चाहता
किसी को मेरा नाम याद है क्या….

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