वे मुझ पर हँस रहे थे,
ढाबोलकर और पणसरे की हत्या भारत में हुई, सबीन महमूद की कराची, पाकिस्तान में, फिर हत्यारे एक कैसे हुए?
मैं अंधविश्वास के विरोधी नरेन्द्र ढाबोलकर और गरीबों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले गोविंद पणसरे के हत्यारों पर
पाकिस्तान में मानवाधिकार के लिए संघर्ष करने वाली सबीन महमूद की हत्या का भी आरोप लगा रहा था.
ढाबोलकर और पणसरे की हत्या भारत में हुई, सबीन महमूद की कराची, पाकिस्तान में,
फिर हत्यारे एक कैसे हुए?
जब हत्या विचारधारा के कारण होती है तो वो किसी व्यक्ति विशेष पर प्रहार नहीं होता,
वो असहिष्णुता
विचारधारा के विरुद्ध है.
मैं असहिष्णुता वाली विचारधारा को ही दोषी मानता हूँ, चाहे वो ईसा को सूली पर चढाने का जुर्म हो, मुहम्मद साहब को मक्का से पलायन करने पर मजबूर कर देना हो, इमाम हुसैन का गला काट डालना हो, गांधी को गोलियों से भून डालना हो, कट्टरपंथियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले सलमान तासीर की हत्या हो, मलाला पर गोलियों से आक्रमण हो, तीस्ता सेतलवाड को झूठे आरोपों में फंसाना हो या सरकार द्वारा ग्रीनपीस की प्रिया पिल्लई पर शिकंजा कसना हो.
ये सब केवल मानवतावादी विचारधारा के विरुद्ध अमानवीय विचारधारा का क्रूर अपराध है.
नाथूराम गोडसे और कसाब जैसे हत्यारे तो केवल उस अमानवीय विचार का मुखौटा होते हैं !





