भारतीय संविधान के मूलभूत धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बदलने के लिए सतत प्रयत्न हो रहे हैं : जस्टिस पी बी सावंत, पूर्व सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश

कम्युनलिज़्म कॉम्बेट और हिल्ले ले टीवी के लिए तीस्ता सेतलवाड़ के साथ जस्टिस सावंत की खास बातचीत

जस्टिस सावंत सर्वोच्च न्यायालय की उस पीठ में थे, जिसने धर्म निरपेक्षता को भारतीय संविधान के एक स्तम्भ के रूप में परिभाषित किया था। तीस्ता सेतलवाड़ के साथ बातचीत में जस्टिस सावंत ने धर्मनिरपेक्षता, मानक आचरण, भारतीय लोकतंत्र और एक न्यायाधीश के तौर पर आवश्यक सत्यनिष्ठा पर अपने विचार साझा किए।

तीस्ता से बात करते हुए जस्टिस सावंत ने बताया कि किस तरह धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान के मूलभूत ढांचे का हिस्सा थी और उसे संविधान की प्रस्तावना में इसी तथ्य को और व्याख्यायित करने के लिए संविधान में संशोधन किया गया था। भारत में लगातार संविधान की धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा पर संकट की स्थिति के बारे में जस्टिस सावंत ने कहा कि यदि संविधान में धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक शब्द भी बदलने का प्रयास हुआ तो इसका पुरज़ोर विरोध किया जाएगा। भारत को एक धर्मतांत्रिक देश में बदलने की हर कोशिश, जहां पर हिंदुओं के पास अधिक अधिकार हों; का प्रतिरोध कर के उसे चुनौती दी जाएगी।

जस्टिस सावंत ने ये भी कहा कि हर धर्म के ग्रंथ समाज और विधि निर्माताओं को मानक आचरण की राह दिखा सकते हैं। साथ ही ये कि जो लोग ऊंचे पदों पर बैठे हैं, उनको ये नहीं भूलना चाहिए कि वे एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के संविधान के प्रतिनिधि हैं, जो विभिन्नता और सभी के लिए समान अधिकारों पर आधारित है।

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अपनी पुस्तक ‘द ग्रामर ऑफ डेमोक्रेसी’ के बारे में बात करते हुए, जस्टिस सावंत ने साफ किया कि जब तक हम ये सुनिश्चित नहीं करते हैं कि हर व्यक्ति के पास चुनाव लड़ने का अधिकार है, तब तक हम ये नहीं कह सकते हैं कि ये लोकतंत्र सभी का प्रतिनिधित्व करता है।

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