प्रस्तावना (मैं टोपी शुक्ला)

Mayank 5

प्रस्तावना (मैं टोपी शुक्ला)
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हम सबके भीतर एक टोपी शुक्ला है…टोपी जो हिंदू है पर मुसलमानों का पक्का यार है, ये अलग बात है कि वो उनकी बहुत सी बातों से चिढ़ता है क्योंकि ये मुल्क चिढ़ता है…वो उनसे दूर भी नहीं जा पाता है लेकिन पास रहने के लिए पछताता भी है क्योंकि मुल्क ऐसा मानता है कि बंटवारा उन्होंने करवा दिया…वो अपनी दादी से जितनी नफ़रत करता है, उतनी ही इफ़्फ़न की दादी से मोहब्बत…लेकिन उसे हिंदू अपना नहीं मानते और मुसलमान….वो कैसे मानेंगे…उसके अपने सिर्फ वो हैं, जो मज़हब के दायरे से ऊपर इंसानी रिश्ते बना लेते हैं…क्योंकि बंटवारे के बाद ख़्वाब भी हिंदू और मुसलमान होने लगे थे….ये सीरीज़ उनके लिए है जिन्होंने Rahi Masoom Raza का उपन्यास Topi Shukla पढ़ा है और उनके लिए भी जो इसके बाद पढ़ेंगे…तय किया था कि इसे १४ अगस्त को ही शुरु किया जाएगा…सो आपके लिए है साथियों…

मैं टोपी शुक्ला (भाग १)
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टोपी बचपन से ही अपनी मां के बहुत करीब था, सो दादी की नफ़ीस उर्दू नहीं सीख सका। मां, अवधी बोलती थी और डॉक्टर पंडित भृगु नारायण शुक्ल नीले तेल वाले का बेटा होने की वजह से, उसे समझ भी नहीं आता था कि दादी ये अजीब ज़ुबान क्यों बोलती हैं लेकिन टोपी था कट्टर हिंदू, शाकाहारी और मियां लोगों का छुआ भी नहीं खाता था।
लेकिन फिर टोपी की ज़िंदगी में इफ़्फ़न आया…कोई ज़र्गाम साहब का बेटा, ज़र्गाम साहब सरकारी अधिकारी थे, डिप्टी कलेक्टर लेकिन टोपी को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी, टोपी का दिल चस्पा था इफ़्फ़न की चमकती साइकिल में और वो सुकून पाता था उसकी दादी के आंचल में। हालांकि वो 8 साल की उम्र में भी मियां लोगों का छुआ नहीं खाता था, इसलिए वो ज़र्गाम साहब के घर अक्सर भूखा बैठा रहता था लेकिन इफ़्फ़न की दादी वही ज़ुबान बोलती थी, जो उसकी मां बोलती थी।
अपनी दादी से बेइंतिहा नफ़रत ने उसे उर्दू से नफ़रत बख्शी लेकिन मां से बेइंतिहा मोहब्बत ने उसे मियां के घर की एक बूढ़ी औरत में दादी बख्श दी। इफ़्फ़न की दादी के इंतक़ाल के वक़्त उसने सोचा कि “क्या उनकी जगह, उसकी दादी नहीं….”
दरअसल ये कहानी हम सबकी ज़िंदगी में वहां से शुरु नहीं होती है, जहां न मालूम कौन से तेल वाले कौन से शुक्ला डॉक्टर के बेटे टोपी यानी बलभद्र नारायण शुक्ल और इफ़्फ़न यानी कि डिप्टी कलक्टर न मालूम कौन से ज़र्गाम साहब के बेटे की कहानी शुरु होती है लेकिन ये भी तय है कि मेरे जैसे सारों की ज़िंदगी में ये कहानी होती ज़रूर है।

(जारी….)

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