14th August
पिछले 65 सालों में जम्हूरियत के लिए जो संघर्ष पड़ोसी मुल्क के हमारे भाई-बहनों और साथियों ने किया है…वो हमने नहीं किया…न ही उतनी दिक्कतें झेली हैं…हमको सलाम करना चाहिए उस अवाम को जो गोलियां खाती है…फांसी पर चढ़ती है…तालिबान से लोहा लेती है…जहां नाहिदा किश्वर हैं…जहां फै़ज़ थे…हबीब जालिब थे…अहमद फ़राज़ थे…इक़बाल बानो थीं…जहां मलाला है…जहां लगातार एक जंग है कट्टरपंथियों के खिलाफ़…जान पर खेल कर कट्टरपंथ से जंग जैसी हमारे यहां कभी नहीं देखी गई…वो मुल्क जहां बोल और ख़ुदा के लिए जैसी फिल्में बनती हैं…हर 4 साल बाद इमरजेंसी लगती है और लाखों लोग जेल जाने को तैयार हो जाते हैं…
आप चाहें या न चाहें 6 दशकों से फौजी हुक्मरानों, तानाशाहों और कट्टरपंथियों के खिलाफ़ लड़ रही जनता को मैं 14 अगस्त को उनकी आज़ादी और मुल्क की विलादत के दिन बधाई देना चाहता हूं…सलाम करना चाहता हूं फांसी पर चढ़ गए भुट्टो…और ज़ुल्मत को ज़िया कहने के खिलाफ़ तन कर खड़े हो गए हबीब जालिब को…जेल जाने वाले फ़ैज़ को…और जान खतरे में डाल कर भी तालिबान के सामने सिर न झुकाने वाली मलाला को…तमाम उन लोगों को जिनको हम पाकिस्तानी अवाम कहते हैं…जिनके भरोसे पर ये जियाले लड़ते रहे…तमाम सहाफियों को जो तानाशाही के खिलाफ़ कलम को तलवार बना कर लड़ते रहे…तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जिनके दम पर लोग कट्टरपंथियों का सामना कर रहे हैं…तमाम दोस्तों को जो जब बात करते हैं और मिलते हैं तो लगता है कि कोई घर का बिछड़ा सदस्य घर लौटा है…
मेरा सलाम है लाहौर को…करांची को…रावलपिंडी को…क्वेटा को…हड़प्पा और तक्षशिला को…रावी और चिनाव को…सिंधु को…और हिंदू देवी के नाम से ही अब तक पुकारी जाती सरस्वती को…आपकी नफ़रत को धोती और धिक्कारती ये नदियां जिनके नाम पाकिस्तानी या इस्लामिक नहीं हैं…आज भी पाकिस्तान से बहती हुई हिंदोस्तान में आती हैं…कभी इनके तटों पर कोई ऋषि साधना करता रहा होगा…आज कोई नमाज़ी वुजू करता होगा…लेकिन आज भी खेती इंसान कर रहे हैं…पानी वही है…पाकिस्तान में भी और हिंदुस्तान में भी…सवाल सिर्फ इतना है कि क्या हमारी आंखों में आज भी उतना ही पानी और ज़ेहन में उतनी ही इंसानियत बची है…सोचिएगा कि क्या इंसानियत नागरिकता की रूह है या फिर नागरिकता इंसानियत का मूल तत्व…सोचते सोचते बस देर मत कर दीजिएगा…पाकिस्तान को रात 12 बजने से पहले आज़ादी के दिन की मुबारकबाद दे दीजिएगा..
