बरसात – कँवल भारती

 

 

Kanwal B

 

(दिलीप मंडल को पढ़ने के बाद)

दो किस्म के लोग होते हैं, एक वे जो मानसून के आगे-आगे भागते हैं
दूसरे वे जो रोज मानसून में भीगते हैं,
पहले किस्म के लोग आनंद लेते हैं मानसून का चाय-पकौड़ों के साथ
दूसरे भीगते हैं पेट की आग बुझाने के लिए.
हम एक को कह सकते हैं पेट-भरे लोग,
और दूसरे को खाली पेट दिहाड़ी मजदूर.
मैं अपने बचपन में देखता था अपने दिहाड़ी मजदूर बाप को
बरसात में रोज सुबह बोरी ओढ़े भीगते जाते हुए
और कभी कभी देर रात में भीगते आते हुए भी.
पेट भरे लोग हर सुबह बरसात का इन्तजार कर सकते हैं
पर मुझे याद है मेरी माँ रोज रात को प्रार्थना करती थी–
हे, राम जी! कल कू मत बरसना .

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