लो आ गई बहार, इंसाफ हुआ है
क़ातिल की जय-जयकार, इंसाफ हुआ है
मुर्दों की कैद से वो, आजाद हो गया
अब राजपथ बुहार, इंसाफ हुआ है
मक़्तल का हर निशान, देता है गवाही
मुंसिफ कहे बेकार, इंसाफ हुआ है
चांदी की है कटार, सोने की मूठ है
फिर क्यों करे गुहार, इंसाफ हुआ है
कुछ फर्क नहीं है, कब्र और सड़क में
ख़बरे हैं धुआँधार, इंसाफ हुआ है
सच्चाई की है पीठ, झूठे की जूतियाँ
हँसता है गुनहगार, इंसाफ हुआ है
घड़ियाल भी यहाँ , शरमा रहा हुज़ूर
रोया वो ज़ार-ज़ार, इंसाफ हुआ है
.पंकज परवेज़
