
आदिवासी
गरीब
जूठन चाटते लोग
आत्महत्या करते किसानों
दिमागी बुखार
हैजे
कुपोषण से मरते बच्चों
चूहा खाते मुसहरों
और
मैला ढोते लोगों के देश में
मेरा
तुम पर
तुम्हारे भगवान पर
और मुसलमानों पर टमाटर फेंकने
थूकने वाले
लोगों पर लिखते रहना
वाकई कितना अश्लील है न
ये ही लोग बदलेंगे देश
और इसलिए
अब मैं नहीं लिखूंगा
सिर्फ देखूंगा
कि तुम्हारा लोकतंत्र
मुझे लिखने से रोक सकता है
तो क्या लिखने पर मजबूर भी कर सकता है
लोकतंत्र का मतलब भी
पता है क्या तुम को
एक बार कहो न हां…
मैं मुस्कुराना चाहता हूं
वरना तो मुक्तिबोध की कविता हैं हम सब
अंधेरे में…