
मेरी वॉल पर आज सुबह किसी ने कमेंट किया कि “मनीषा रोज़ एक बॉयफ्रेंड को एक्सपोज़ कर रही हो! कितने और?”
क्या हिम्मत है? इस बहादुरी पर तो क्राउन मिलना चाहिए।
सवाल ये नहीं है कि उसने “मुझसे” ये सवाल पूछा, बल्कि सवाल ये है कि मर्द किसी भी स्त्री से इतने हक और अहंकार के साथ ऐसे सवाल कैसे पूछ लेते हैं?
मैं अकसर हैरान होती हूं मर्दों की इस बेलगाम हिम्मत पर। लगता है जैसेकि ये जानना उनका हक है कि मेरे कितने ब्वायफ्रेंड थे।
“दो-चार-आठ-दस-सौ।” या कि एक भी नहीं।
कितने भी हों, लेकिन दुनिया में कोई भी ये जानने वाला कौन होता है? मुझसे ये सवाल पूछने वाला कौन होता है कि बताओ मुझे कि कितने थे?
इस अहंकार का आलम तो ये है कि ब्वॉयफ्रेंड की छोड़ो, चलते-फिरते, आते-जाते, इनबॉक्स में घुसकर और फेसबुक पर भी पूरे अहंकार और बेहयाई के साथ पुरुष ये सवाल ऐसे पूछते हैं जैसेकि उनका जवाब देना मेरा परम कर्त्तव्य है और जवाब न देकर मैंने कोई धृष्टता कर दी है।
और मुझे नफरत है इस सफाई देने से। कोई मुझसे क्लैरीफिकेशन मांगे तो मैं और नहीं देती। जिस पवित्रतापूर्ण जवाब की उम्मीद में सवाल पूछा गया होता है, उसका उल्टा ही बोलती हूं।
“तीन-चार ब्वॉयफ्रेंड तो रहे ही होंगे?”
नहीं 100 थे और 100 अभी और होंगे। कोई परेशानी।
“आजकल उसके साथ काफी बातें कर रही हो।”
“हां, अफेयर चल रहा है उसके साथ मेरा, कोई तकलीफ।”
“ही इज लाइकिंग ऑल योर फेसबुक पोस्ट दीज डेज।”
“येस, आय एम डेटिंग हिम। एनी प्रॉब्लम?”
मर्दों का तो ये हाल है कि मुहल्ले के लौंडे से लेकर सड़क का आवारा लड़का तक हम लड़कियों को कभी भी सफाई देने और अपनी पाकीजगी साबित करने के लिए कह सकता है। लेकिन उनसे ज्यादा हम लड़कियां मरी जाती हैं सफाई देने के लिए। साबित करने के लिए हम बेदाग, पवित्र और चरित्रवान लड़कियां हैं। चार ब्वॉयफ्रेंड तो हमारा जिंदगी में कभी नहीं हो सकता। जबकि लड़के हर इश्क के साथ अपने मुकुट में एक और पंख सजा लेते हैं। लड़कियां जीतने और हासिल करने की चीज जो ठहरीं।
लेकिन मैं नहीं हूं जीतने और हासिल करने की चीज। मैं अच्छी लड़की नहीं हूं। चरित्रवान भी नहीं हूं। मैं 60 साल की उम्र में भी किसी के इश्क में पड़ सकती हूं और किसी के पूछने पर कोई सफाई भी नहीं दूंगी।