यदि आरएसएस और कॉरपोरेट का ‘मोदी-उन्माद’ सफल हो गया, तो किस तरह के हालात देश में पैदा हो सकते हैं, इसकी कल्पना हम उस कालखंड (1999) से कर सकते हैं, जिसमें अटलबिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे. तब आरएसएस अपने पूरे प्रभाव में था और उसकी हिंदुत्व-रक्षक सारी भुजाओं को खुली छूट मिली हुई थी. इन हिन्दू वाहिनियों ने अपने मिशन की शुरुआत की थी आदिवासी इलाकों से. नासिक के समीप ‘पेह’ में हिन्दू रक्षा समिति ने हिन्दू महासम्मेलन किया, जिसमें आदिवासी ईसाईयों को हिन्दू बनाया गया और ईसाई मिशनरियों को धर्मान्तरण के खिलाफ धमकी दी गयी. ईसाई मिशनरी आदिवासियों को ईसाई तो बना रहे थे, पर उन्हें पढ़ा-लिखा कर इंसान भी बना रहे थे. यही सास्कृतिक परिवर्तन आरएसएस को पसंद नहीं था. इसलिए ईसाईयों और चर्चों पर हिन्दुत्ववादियों के हमले हुए. उड़ीसा में अंजना मिश्रा बलात्कार कांड हुआ तथा एक ईसाई मिशनरी और उसके दो मासूम बच्चों को कार में जिन्दा जला कर मार डाला गया. इसी कड़ी में भाजपा समर्थित रणवीर सेना ने बिहार के जहानाबाद में 23 दलितों की नृशंस हत्या की. उस समय जो काम बजरंग दल अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ गुजरात और उड़ीसा में कर रहा था, वही काम रणवीर सेना बिहार में कर रही थी. बिहार में राबड़ी सरकार थी, जिसे बर्खास्त कर दिया गया था. पर इसी बिना पर उत्तरप्रदेश में कल्याणसिंह की सरकार को बर्खास्त नहीं किया गया, जहाँ दो दर्जन से ज्यादा दलितों की हत्याएं, बलात्कार और उत्पीडन की घटनाएँ घट चुकी थीं. उड़ीसा सरकार भी बर्खास्त नहीं की गयी थी, जहाँ बजरंग दल के मर्दों ने निर्दोष अल्पसंख्यकों की निर्मम हत्याएं करके तथा उनके पूजा स्थलों में आग लगा कर अपनी मर्दानगी दिखाई थी. इसके उलट केंद्र की भाजपा सरकार ने बजरंग दल को प्रतिबंधित करने की बजाय उसे क्लीन चिट दे दी थी. उन सभी राज्यों में, जहाँ भाजपा सत्ता में थी, हिंदुत्व का दलित-अल्पसंख्यक विरोधी तांडव खुलेआम चल रहा था और वाजपेयी सरकार उसे विपक्ष का षड्यंत्र बता कर हिन्दू फासीवाद का मार्ग प्रशस्त कर रही थी. 2002 में सबसे बड़ा जघन्य हत्या कांड गुजरात में हुआ, जिसका नेतृत्व खुद नरेंद्र मोदी ने किया था. यह इतना भयानक था कि उसे इंसानियत के सीने पर हैवानियत का नंगा नाच कहा जा सकता है. गुजरात में इसकी आग मुसलमानों के दिलों में अभी भी महसूस की जा सकती है. जिन हिन्दू वाहिनियों ने यह काण्ड किया था, उन्होंने क्या नहीं किया था. गर्भवती औरतों के पेट काटे थे, सामूहिक बलात्कार किये थे और बंद घरों में पानी छोड़ कर उसमे करेंट लगा कर लोगों को मारा था. प्रधानमन्त्री वाजपेयी जी ने मोदी को तो राजधर्म निभाने की सलाह दी थी, पर मोदी सरकार को बर्खास्त करने का अपना राजधर्म वह भी भूल गये थे.
यह सब बताने की जरूरत इसलिए पड़ रही है, क्योंकि जनता की याददाश्त कमजोर होती है, वह जल्दी भूल जाती है. वह इसे पढ़ कर यह जान जाय कि वतन को फासिस्ट ताकतों के हवाले करने के क्या परिणाम होते हैं? भाजपा का सत्ता में आना सिर्फ एक पार्टी का सत्ता में आना नहीं है. इसका अर्थ है आरएसएस के सांस्कृतिक फासीवाद का सत्ता में आना, जो लोकतंत्र और संविधान में आस्था नहीं रखता है.
18 अक्टूबर 2013

