लाल लाल लाल
बारूद का श्रृंगार
जंग से खुशियों के फूल सजेंगे
क्यारियों में फुहार पड़ेगी
माहौल में खुशबू फैलेगी
आओ जंग का जश्न है यह
जंग के नक्कारों की थाप पर
रक्स करेंगे मुनाफ़ाखोर और सियासतदान
जगह बनाओ अभी से चिताओं के लिए
जंगल काटो कि जिस्म लाखों जलेंगे
कब्रिस्तान खाली करवा दो कि शहीदों के मज़ार बनने हैं
पर पहरा देना
देखना कहीं कोई पुरानी जंगों का शहीद ज़बान न खोल दे
जंग-ए अज़ीम के करोड़ों शहीदों को खामोश रखना होगा
क्रेमलिन को तबाह करने की कोशिश में
सिपाहियों के गल गए हाथ पैर को ज़बान न मिल जाये
कहीं वियतनाम से कोई आवाज़ न उठ जाय
बांग्लादेश भी पडोसी है
देखना कहीं पांच लाख शहीद सीमा पर धरना न दे दें
रोकना होगा उन चीखों को भी
जो उन औरतों की गूंजी थी उसी मुल्क में
जिनके नतीजे में हज़ारों बच्चे अपने बाप के नाम से नावाकिफ़ पैदा हुए थे
और उसके बाद ख़ामोशी को अमन का लिबास पहना कर
सड़कों पर फ़तह का जश्न करेंगे
और फिर गूंजेगे नारे हर तरफ़
कोई नारा हरहर महादेव
तो कोई नारा अल्लाह-ओ-अकबर
और इन नारों के बीच अमन का पौधा पनपेगा
