लाल लाल लाल – Khurshid Anwar

Khursheed Anwar

लाल लाल लाल
बारूद का श्रृंगार
जंग से खुशियों के फूल सजेंगे
क्यारियों में फुहार पड़ेगी
माहौल में खुशबू फैलेगी
आओ जंग का जश्न है यह
जंग के नक्कारों की थाप पर
रक्स करेंगे मुनाफ़ाखोर और सियासतदान
जगह बनाओ अभी से चिताओं के लिए
जंगल काटो कि जिस्म लाखों जलेंगे
कब्रिस्तान खाली करवा दो कि शहीदों के मज़ार बनने हैं
पर पहरा देना
देखना कहीं कोई पुरानी जंगों का शहीद ज़बान न खोल दे
जंग-ए अज़ीम के करोड़ों शहीदों को खामोश रखना होगा
क्रेमलिन को तबाह करने की कोशिश में
सिपाहियों के गल गए हाथ पैर को ज़बान न मिल जाये
कहीं वियतनाम से कोई आवाज़ न उठ जाय
बांग्लादेश भी पडोसी है
देखना कहीं पांच लाख शहीद सीमा पर धरना न दे दें
रोकना होगा उन चीखों को भी
जो उन औरतों की गूंजी थी उसी मुल्क में
जिनके नतीजे में हज़ारों बच्चे अपने बाप के नाम से नावाकिफ़ पैदा हुए थे
और उसके बाद ख़ामोशी को अमन का लिबास पहना कर
सड़कों पर फ़तह का जश्न करेंगे
और फिर गूंजेगे नारे हर तरफ़
कोई नारा हरहर महादेव
तो कोई नारा अल्लाह-ओ-अकबर
और इन नारों के बीच अमन का पौधा पनपेगा

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