गांव गए हो कभी
नुक्कड़ पर
छप्पर के नीचे
सुबह से गांजा लगा कर
जुआ खेलते
9 पुरुष
आपस में बात करते हैं
अपनी औरतों से
बेहद परेशान
कहते हैं
कल साली को खूब मारा
आज कल
हरामखोर हो गई है
काम में मन नहीं लगता है
साली मुफ्तखोर
दो पड़े हैं
देखो
कैसे सुबह से
लगी है खेत में काम पर
अब देखो
मुन्ना रो रहा है
फिर खाएगी जूते
शहर के पुरष
दफ्तर में ये ही करते हैं
बस भाषा
अलग होती है
जाने दीजिए
शहर की बात भी क्या करना
शहरी भी
कोई लोग होते हैं क्या…
