शमीमा बी, तुम्हें दिल की गहराइयों से सलाम: सबा दीवान

 

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मैँ कॉलेज जानी वाली उस 19 साल की लड़की के बारे में सोच रही थी. अगर मेरी बेटी होती तो उसकी उम्र भी करीब इतनी ही होती. इस ख्याल ने मुझे उसकी माँ के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं शमीमा कौसर से कभी मिली नहीं हूँ. मुझे तो उनके बारे में वही पता है जो न्यूजपेपरों ओर टीवी में आया है. यह सब देखकर मेरे सामने अपने पति की मृत्यु के बाद कड़े परिश्रम से अपना घर-परिवार चलाने वाली एक महिला की छवि उभरी. उस महिला की सबसे बड़ी उम्मीद उसकी बेटी इशरत ही थी. इशरत उसके बच्चों में सबसे बड़ी तो नहीं थी लेकिन सबसे जहीन जरूर थी. इशरत कन्धे से कन्धा मिलाकर अपनी माँ का साथ देना चाहती थी.

शमीमा को इशरत पर फक्र था. इशरत अक्लमंद और जिम्मेदार थी. वह कॉलेज में पढ़ाई करने के साथ ही अपनी माँ की मदद करने के लिए पार्ट टाइम काम करती थी. फिर इशरत का अपहरण हुआ, उसकी हत्या हुई और यह सब किया गुजरात के ताकतवर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पुलिस फोर्स ने. मैं अक्सर उस सदमे के बारे में सोचती हूँ जो इशरत की मौत की खबर मिलने के बाद शमीमा को लगा होगा. जब उसने वह भयावह तस्वीर देखी होगी, जो उस कथित इनकाउण्टर के बाद खींची गई थी. मृत इशरत की लाश उसी कथित इनकाउण्टर में मारे गए तीन अन्य लोगों की लाश के साथ हाइवे पर पड़ी हुई थी. किसी माँ के जीवन में ऐसा दिन न आए कि उसे अपनी बेटी की ऐसी तस्वीर देखनी पड़े ! लेकिन शमीमा चाहती तो भी वो इस तस्वीर से बच नहीं सकती थी. राज्य प्रायोजित हत्या की भयावह यादगार के रूप में यह तस्वीर अखबार, टीवी, इंटरनेट चारों तरफ नजर आ रही थी. इससे भी बुरा यह था कि शमीमा को अपनी मृत बेटी के बारे में तरह-तरह के आरोप भी सुनने पड़ रहे थे. इशरत को एक ऐसा आतंकवादी बताया जा रहा था जो नरेन्द्र मोदी को मारने के मिशन पर थी.

किसी भी माँ के लिए यह एक दुःस्वप्न जैसा होगा. शमीमा के लिए यह इतना ही त्रासद रहा होगा. वह इस दारुण दुःख और हताशा में अपना दिमागी संतुलन भी खो सकती थी. लेकिन उसने अपनी बेटी इशरत को न्याय दिलाने के लिए लड़ने का निर्णय लिया. मैं नहीं जानती कि इस देश के सबसे ताकतवर लोगों में से एक की पुलिस फोर्स के खिलाफ लड़ने की ताकत शमीमा में कहाँ से आई ? मैं नहीं जानती कि ऐसे वक्त में उसने न्याय की लिए नौ लम्बे सालों तक संघर्ष करने के लिए हौसला कैसे बनाए रखा, वो भी तब जब यह लगने लगा था कि अब सच कभी भी सामने नहीं आ सकेगा ? लेकिन जब मैं शमीमा की तस्वीर को देखती हूँ तो उसके घरेलू गोल चेहरे से झाँकती गरिमा में मुझे अपने सवालों का जवाब मिल जाता है. उसकी आँखों में एक शांत दृढ़निश्चय की झलक मिलती है. और मेरे कानों में एक संगीत गूँजता है. एक संगीत जो मुझे अक्सर मानवीय चेतना, उसके साहस, और अंततः विजयी होने वाले सत्य की सुंदरता का संदेश देता है.

शमीमा बी, तुम्हें दिल की गहराइयों से सलाम। एक गीत आपके लिए…http://www.youtube.com/watch?v=N8cPcaegY7M

सबा दीवान स्वतंत्र फिल्मकार और शोधकर्ता हैं। दिल्ली में रिहाइश है। फिरक़ापरस्ती और फासीवाद के खिलाफ जंग लड़ रहे लोगों की क़तार में हमेशा मौजूद रहती हैं। 

2 thoughts on “शमीमा बी, तुम्हें दिल की गहराइयों से सलाम: सबा दीवान

  1. hi Mam , please pen your thoughts for those killed by these terrorists . their family and loved ones. its unfortunate that the state has to do this but these killings save many many lives .

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