मोदीयापे से सावधान : महताब आलम

mahtab alam

सनीचर की सुबह अख़बार खोलते ही एक दिलचस्प खबर पर नज़र पड़ी। खबर का शीर्षक था: “Fronting Modi would prove detrimental to BJP: Vastanvi”. इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पी टी आई के हवाले से छपी थी। दूसरे अख़बारों में भी ये ख़बर थी। हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा- “BJP has dug its grave by selecting Modi: Vastanvi”. इसमें पीटीआई और हिंदुस्तान टाइम्स के संवादाता की साझी बाइलाइन थी। इंडियन एक्सप्रेस में एक और ख़बर थी: “Gujarat BJP to hold Muslim Meet to flaunt drawing power”. ये खबर सूरत की थी, जहाँ मुस्लिम अच्छी खासी तादाद में हैं। जिसके बारे में मैंने मज़ा लेते हुए अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा- “अडवाणी जी ने सहिये कहा था कि भाजपा अपने मूल से भटक रही है: ये सावरकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के आदर्शों वाली पार्टी नहीं रही। लगता है कि ये कहते हुए, उनके मन में भाजपा में बढ़ता ‘मुस्लिम –तुष्टिकरण’ की समस्या थी. पर बेचारे को कोई समझे तब तो!”

लेकिन असल मसाला दैनिक भास्कर के अंग्रेजी वेबसाइट पर था: “BJP plays Muslim card, invokes ex-Darul Uloom VC Vastanvi to garner support for Modi”. ये खबर श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) से आई थी। इस खबर के मुताबिक जम्मू-कश्मीर बीजेपी के उपाध्यक्ष विबोध गुप्ता ने कहा था कि, “Modi is a symbol of development and all sections of the society including Muslims have shown faith in him. Even top Muslim scholar and former vice-chancellor of Darul Uloom Deoband Ghulam Vastanvi said that Muslims should not have any problem if the country would vote to make Modi as the next prime minister”.

वस्तानावी, जिसका पूरा नाम गुलाम मोहम्मद वस्तान्वी है और जो उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध मदरसा, दारुल उलूम देवबन्द के वाइस चांसलर रहे हैं। ये साहब सबसे पहली बार जुलाई 2011 में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। इससे पहले शायद ही मैंने वस्तानवी का नाम भी सुना हो। कारण ? टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के एक संवादाता को दिए इंटरव्यू में इन्होंने नरेन्द्र मोदी की कथित रूप से तारीफ़ कर दी थी। जिसके बारे में वस्तान्वी का कहना था कि संवाददाता ने उसकी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। पर जो भी और इस पर वस्तान्वी की खूब फजीहत हुयी और अंततः उन्हें वाईस चांसलर के पद से हटना पड़ा।

मुझे ये खबर पढ़कर ख़ूब हंसी आई। पर फिर मुझे ध्यान आया कि किस तरह बीजेपी अलग-अलग इलाको में अलग-अलग पैंतरे अपना रही है. मसलन गुजरात में बीजेपी जहाँ “मुस्लिम समाज सम्मलेन” करके, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के आसपास के इलाकों में वस्तान्वी का हवाला देकर मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही है, वहीँ उसे दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में मोदी का नाम लेने तक का परहेज़ है. दिल्ली में आज यानी 23 जुलाई होने वाले एक सम्मलेन में भाग लेने के आह्वान के लगे पोस्टर्स में से मोदी नदारद हैं। और ये सब एक प्लान के तहत हो रहा है. ये महज़ इत्तेफ़ाक नहीं है। बीजेपी, संघ की तरह ऐसे पैंतरे खेलने में माहिर है। संघ की राष्ट्रीय मुस्लिम मंच इसकी बेहतरीन मिसाल है. अलबत्ता इस खास फेनोमेना को चु***** के तर्ज़ पर एक नए शब्द “मोदियापे” से ताबीर किया जा सकता है। जिससे सावधान हर खास व आम को सावधान रहने की सख्त ज़रुरत हैं, क्यूंकि इसवक़्त मुख्यधारा की मीडिया (exception always exist) पूरी तरह मोदियापे में मुब्तला है !

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