अब वो घर में नहीं…सड़क पर झगड़ते हैं…संस्कारी हैं न!

ADVANI LETTER ये वो इस्तीफा और चिट्ठी है, जो लाल कृष्ण आडवाणी ने राजनाथ सिंह को भेजी…इसमें बीजेपी के आदर्शवादी पार्टी होने की बात कही गई है। हालांकि वो बात भी ख़ुद में एक मज़ाक है लेकिन ये चिट्ठी बीजेपी के अंदरखाने में जो कुछ चल रहा है, उसका चेहरा है…आडवाणी ख़ुद ही एक निजी एजेंडे पर खफ़ा हैं लेकिन पार्टी की चाल बदलने की बात कर रहे हैं…बाकी नेताओं पर निजी एजेंडों की सेवा का आरोप लगा रहे हैं…हालांकि दिक्कत चाल से नहीं है, चेहरा बदल जाने से है…ख़ैर बीजेपी का चरित्र हमेशा रहा ही ऐसा है…मुखौटे उतरते हैं तो शक्लें आमतौर पर मुखौटों से बदतर होती हैं…राजनीति किस कदर निष्ठुर होती है, ये कभी आडवाणी ने रथयात्रा निकाल कर और दंगे भड़का कर दिखाया था…अब रथ को धक्का लगाने वाले, खुद आडवाणी को राजनीति की निष्ठुरता का अहसास करवा रहे हैं…संस्कारों की माला जपती पार्टी में वरिष्ठ वृद्ध को घरवालों ने वृद्धाश्रम भेजने की तैयारी की तो वृद्ध ने भी अपना बचाकर रखा गया हथियार निकाला…आडवाणी ने इस्तीफा दिया, बीजेपी की अंतर्कलह सामने आई…सामने ये भी आया कि संघ अंततः अपने कम्युनल एजेंडे के लिए मोदी का सहारा लेकर राजनाथ को कुर्सी पर बिठाने की तैयारी में है…लेकिन दिक्कत ये हो गई कि गांव बसने से पहले ही उल्लू रोने लगे…लुटेरे आ गए…सिर्फ 96 सीटों वाली बीजेपी पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर इस कदर आपस में लड़ गई कि ये ही भूल गई कि न तो अभी चुनाव हुए हैं….और नही सरकार बनी है…पहले तो ये ही सोचना होगा कि चुनाव में 96 से बढ़ कर कितनी सीटें आएंगी कि जेडीयू के बिना सरकार बनेगी…नवीन पटनायक के बिना बहुमत आएगा…और तब मोदी या राजनाथ पीएम बनेंगे…ख़ैर शहरी संस्कारी पार्टी ‘गुजरात के पीएम’ को चेहरा बनाना चाहती है…ज़ाहिर है गुजरात में भी विकास के नक्शे पर शहर ही हैं सिर्फ…अहमदाबाद, सूरत और बड़ौदा….बाकी गुजरात सूखा और भूखा है…मुद्दा ये है कि चाल चरित्र और चेहरा न था और न है…अब साफ है…पहले धोखा था…न जाने किस मुगालते में हैं ये लोग…कि सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा…आप पढ़िए इस चिट्ठी कम इस्तीफे को…हिंदी अनुवाद नीचे है…

प्रिय श्री राजनाथ सिंह जी…

मेरे लिए ये बड़े गर्व की बात रही है कि मैं आजीवन जनसंघ और बीजेपी के लिए काम करता रहा…. लेकिन पिछले कुछ समय से मुझे पार्टी की कार्यप्रणाली और दिशा से तालमेल बिठाने में मुश्किल हो रही है…मुझे अब ये बिल्कुल महसूस नहीं होता कि ये वही आदर्शवादी पार्टी है, जिसकी डॉ. मुखर्जी, नाना जी और वाजपेयी जी ने स्थापना की थी…जिसकी अकेली चिंता देश और उसके लोग थे…ज्यादातर नेताओं को अब सिर्फ अपने निजी एजेंडे की चिंता है…. इसलिए मैंने तय किया है कि मैं पार्टी की तीन मुख्य समितियों राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस्तीफा दे दूं….इस पत्र को मेरा त्यागपत्र माना जाए.. आपका, लालकृष्ण आडवाणी

(अनुवाद- रणविजय और मयंक)

Advanis-resignation-letter-poster ख़ैर ये एक नई तस्वीर है…मंगलवार (आज) अल सुबह की…आडवाणी के इस्तीफे के बैनर छपवा कर किसी ने बीजेपी मुख्यालय समेत दिल्ली भर में लगवा दिए…शीर्षक था ‘भाजपा का पर्दाफ़ाश’

बीजेपी की फजीहत सरेराह देखनी हो तो दिल्ली की सड़कों पर निकल जाइए…देखिए कि घर की लड़ाई सड़क पर किस तरह पोस्टर और बैनर बन कर चिपक-लटक गई है…बीजेपी की अंदरूनी कलह पर आडवाणी के इस्तीफे पर चुटकी का जो दौर शुरु हुआ है…उसमें ये तो बीजेपी ने सोचा भी नहीं था…अल सुबह जब लोग सड़कों पर निकले, तो देखा कि सड़कों पर सफेद रंग पर काली स्याही से आडवाणी के इस्तीफे का मजमून कहीं पोस्टरों तो कहीं बैनरों की शक्ल में टंगा था….

ये बैनर बीजेपी के राष्ट्रीय मुख्यालय के पास दिल्ली की अशोका रोड पर लगा हुआ है…बड़ा-बड़ा लिखा है बीजेपी का पर्दाफाश…और नीचे है आडवाणी का इस्तीफा, जिसमें उन्होंने बीजेपी की अंदरूनी हकीकत को कलम से उघाड़ दिया है… ये बैनर दिल्ली में और भी जगह लगे हुए हैं…लोग आ रहे हैं…इसे पढ़ रहे हैं…पढ़ कर मुस्कुरा रहे हैं…यानी कि घर के झगड़े का सड़क पर तमाशा बन गया है…

हालांकि तमाशा तो शुरु उसी रोज़ हो गया था, जब मोदी के पक्ष में और आडवाणी के खिलाफ आडवाणी के घर के बाहर प्रदर्शन शुरु हो गया था… तमाशा तो तब भी बना था, जब आडवाणी अचानक बीमार हो गए थे…और फिर बीजेपी के कई और आला नेता उनकी बीमारी से बीमार हो गए थे…और गोवा की अहम बैठक में नहीं गए थे… तमाशा तो तब भी बना था, जब गोवा के सम्मेलन के पोस्टर और बैनरों से आडवाणी की तस्वीरें अचानक नदारद हो गई थीं… तमाशा तब भी बना था जब राजनाथ सिंह अचानक गफलत में आडवाणी की बीमारी को भूल गए थे…और फिर तमाशा बन गया था, जब आडवाणी के इस्तीफे की चिट्ठी भेजी गई थी राजनाथ को लेकिन पहुंच गई थी मीडिया के पास…

लेकिन अब इंतिहा हो गई है…आडवाणी का इस्तीफा दीवारों पर चिपका है और सड़कों पर लहरा रहा है… अभी तक पता तो नहीं कि ये बैनर किसने लगाए हैं…लेकिन बाद में मीडिया में इस पोस्टर को दिखाए जाने के बाद बीजेपी मुख्यालय के बाहर से आनन-फानन में पोस्टर को हटा दिया गया है…लेकिन साहब पोस्टर चिपकाने और उखाड़ने से कुछ नहीं होता है…जब एक बार साख उखड़ जाती है, तो वो किसी गोंद से नहीं चिपकती…किसी दवा से ठीक नहीं होती…

– मयंक सक्सेना

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