ज़मानत मंज़ूर – शाहनवाज़ मलिक

Shah

क्रॉर्फ्ड बाज़ार बंद हो चुका था लेकिन बशीर मियां की ज़िंदा मछलियों को अभी तक खरीदार नहीं मिला था। उन्हें औने-पौने दाम पर बेचकर दुकान समेटने की बजाय बशीर मियां ने मछलियों को गले में टांगा और पास की बस्ती में निकल गए। चूंकि सारी मछलियां वाजिब कीमत पर बिक गईं, इसलिए बताना मुश्किल था कि बशीर कितने खुश हैं। क्रॉर्फ्ड बाज़ार में वो उनका आखिरी दिन था। बशीर ने अगली सुबह तबीयत से खरीदारी की और शाम को उत्तर-प्रदेश जाने वाली ट्रेन में बैठ गए। घर पहुंचते ही रिहाना से बोल पड़े कि नादिया की शादी का जश्न पूरा गांव देखेगा। बशीर ने रिहाना को कोने में बुलाकर दो लाख रुपये भी थमा दिए।
खैर, मग़रिब की नमाज़ पढ़कर लौटते वक्त बशीर मियां ने देखा कि जुमराती जुलाहा पड़ोसी पर फरसा ताने हुए है। दोनों घरों के बीच से निकली एक गली को लेकर झगड़ा रोज़ का मामूल था। बशीर मियां बीच-बचाव करने पहुंचे तो उनके गुस्से का शिकार हो गए। ख़बर बशीर के घर तक पहुंची तो शादी के लिए इकट्ठा हुए रिश्तेदार भी मैदान में आ गए। तीनों पार्टियों में जमकर तीर-भाले चले। गांव पहुंची पुलिस ने दोनों पड़ोसियों और बशीर के दर्जनभर रिश्तेदारों को हवालात में डाल दिया और बशीर अस्पताल में भर्ती करा दिए गए।
हवालात की ख़बर सुनते ही सकपकाए बशीर ने नसों में धंसी सुईयां नोंच फेंकी और थानेदार के सामने हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठ गए। बोले कि उनके रिश्तेदारों की कोई गलती नहीं है, उन्हें रिहा कर दिया जाए, वरना बेटी नादिया की शादी कैसे होगी? थानेदार बोला कि नेताजी का दबाव था, इसलिए सभी पर मुकद्दमा क़ायम हो गया है और अब ज़मानत कोर्ट से होगी। एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी ज़मानत नहीं हुई। नादिया की शादी में सिर्फ 10 दिन बाकी थे। वकील ने सलाह दी कि अब तो जज साहेब के पेशकार ही तुम्हारे खुदा है।
फिर क्या था, बशीर मियां मय वकील पेशकार की चौखट पर खड़े थे। सारी कहानी सुनने के बाद पेशकार ने कल की तारीख और ज़मानत की उम्मीद दोनों दे दी। अगले दिन पेशकार बोला- बशीर मियां, जज साहेब एक ज़मानत पर चार हज़ार मांग रहे हैं। आपके कुल 11 रिश्तेदार हैं, सो 44 हज़ार का इंतज़ाम कीजिए और ज़मानत करवा लीजिए। और वक्त सिर्फ कल तक का है क्योंकि दो रोज़ बाद जज साहेब की बेटी की शादी है और वो छुट्टी पर जा रहे हैं। पीछे से वकील की आवाज़ आई- ‘और मेरी फीस?’ बशीर मियां चुपचाप घर पहुंचे और रिहाना को दिए रुपयों में से 50 हज़ार वापस मांग लिया। अगली सुबह पेशकार के हाथ पर तय रक़म रख दी और सारे रिश्तेदारों की ज़मानत हो गई। बचे हुए छह हज़ार में से तीन हज़ार पेशकार ने काम करवाने के ले लिए और तीन हज़ार वकील ने अपनी दौड़-भाग के नाम पर वसूल लिए। बशीर के जाते ही वहां एक और शख्स नमूदार हुआ। पेशकार और वकील ने उसे पांच-पांच सौ रुपये अपनी जेब से निकाल कर दे दिए। बाद में पता चला कि वो वकील का छोड़ा हुआ एक दलाल था जिसने मुवक्किल बशीर को वकील तक पहुंचाया था।
नादिया की शादी में अभी भी पांच दिन बाकी थे और जज साहेब की बेटी विदा हो चुकी थी। जज साहेब ने दहेज के इतर अपने दामाद को एसयूवी गाड़ी गिफ्ट की है। बेटी-दामाद मय ड्राइवर लंबे सफर पर निकलने को तैयार हैं। शहर से बाहर निकलते ही मियां-बीवी ने बटन दबाकर गाड़ी की छत खोल दी है और अपने-अपने धड़ बाहर निकालकर रफ्तार और ताज़ी हवाएं घोंट रहे हैं। वहीं बशीर मियां की पेशानी पर ये सोचकर बार-बार बल पड़ रहे हैं कि 50 हज़ार कहां से लाऊं? दहेज कहां से जुटाऊं? खिदमत में कोई कसर रह गई तो कहीं बारात वापस ना लौट जाए। ख़ैर, गनीमत रही कि ऐसा कुछ भी ना हुआ।
नादिया रुखसत हो गई, बस बशीर मियां पर 50 हज़ार का कर्जा चढ़ गया। अगली सुबह पौ फटते ही बशीर ने बिस्तर छोड़ दिया, फज़्र की नमाज पढ़ी, रिहाना के हाथ की बनी चाय पी और एक बार फिर मुंबई की ट्रेन पकड़ ली। एक बार फिर क्रॉर्फ्ड बाज़ार की जिंदा मछलियां बशीर का इंतज़ार कर रही थीं। चुनाव करीब आ चुका है, सो नेताजी अपने काफिले के साथ दिन रात सियासी दौरे पर हैं। अख़बार में दिल्ली के एक स्पा सेंटर का इश्तेहार छपा है। थकान मिटाने की गारंटी जैसा जुमला सुर्ख और मोटे अक्षरों में लिखा है। जज साहेब बदन हल्का करके कोर्ट वापस लौट आए हैं। उनकी छोटी बेटी इंजीनियरिंग कर रही है जिसकी शादी होना अभी बाक़ी है। तभी अर्दली को पीछे ढकेलकर पेशकार जज साहेब के कान में फुसफुसाया- हुज़ूर, ज़मानत करवाने वाले आए हैं…

(शाहनवाज़ मलिक जब लेटे-लेटे बोर हो जाते हैं तो दुनियावी सिनेमा देख लेते हैं। लिखते-पढ़ते कम हैं। इसीलिए ना लेखक हैं, ना पत्रकार और ना ही कवि। शराब पीने के बाद भी जब नींद नहीं आई तो यह लघु कथा लिख बैठे। हादसा 1 जून की रात 3 बजे का है। शिकवा-शिकायत के लिए 09971122203 डायल करें। फोन ना उठे तो jmi.shahnawaz@gmail.com पर सारी भड़ास निकाल लें।)

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