यह मेरे लिए सचमुच विस्मयकारी है कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के रविवार की रात के मुकाबले का रोमांच अब तक लोगों पर तारी है, जबकि इसने क्रिकेट को जबर्दस्त आघात पहुंचाया है। इससे भ्रष्ट, नापाक कुनबापरस्ती वाले व्यभिचारी खेल लीग की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बल्कि किसी को भी इस पर लगे इल्जामों को साबित करने की जरूरत नहीं है, उसे सिर्फ इसके नाम दर्ज रिकॉर्डों को पलटना भर होगा। तो इस लीग को समझने की शुरुआत कहां से करूं? चलिए इसके जनक से आरंभ करते हैं। जनाब अब तक फरार हैं, भारत लौटने से इनकार करते हैं (उनका कहना है कि यहां उनकी जान को खतरा है) और भ्रष्टाचार व टीम की मालिकाना हैसियत से संबंधित तमाम सवालों का कानूनी सामना करने से कतरा रहे हैं।
ललित मोदी से जुड़ी तमाम कहानियों में से सबसे दिलचस्प कहानी एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में छपी थी। उन्होंने तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वह एक 23 वर्षीया खूबसूरत दक्षिण अफ्रीकी मॉडल के वीजा एक्सटेंशन के आवेदन को रद्द करके उसे हिन्दुस्तान से बाहर करें। थरूर ने उनसे कहा कि जाने भी दो, लेकिन आखिर मोदी उस मॉडल से इतने नाराज क्यों थे? बहरहाल, इस किस्म के ओछेपन का प्रदर्शन कर मोदी अक्सर सबको हैरान करते रहे हैं। भारत से भागने से पहले उन्होंने सोनी कंपनी को करीब 440 करोड़ रुपये बतौर ‘फेसिलिटेशन फी’ उस कंपनी को चुकाने को बाध्य किया, जिसमें उनके बॉस शरद पवार के दामाद की हिस्सेदारी थी। उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं! आईपीएल में हम एक घपले को भूल भी नहीं पाते कि दूसरा घोटाला उसकी जगह लेने को तैयार मिलता है।
शरद पवार के निवेश वाली एक कंपनी ने बगैर यह उजागर किए आईपीएल टीम खरीदने की कोशिश की थी, जबकि वह उस वक्त बीसीसीआई के अध्यक्ष थे। जब मामला सामने आया, तो पवार का जवाब था कि उनकी जानकारी के बगैर संबंधित कंपनी ने बोली लगाई थी। जाहिर है, जब हजारों करोड़ की बात हो, तो मातहत लोग अपने आका पवार की चिंता क्यों करते? इस किस्म की कहानियां आईपीएल से ढेर सारी जुड़ी हैं और इस सर्कस में चारों तरफ रोमांच ही रोमांच है। इसकी दो टीमें, डेक्कन चाजर्र्स और कोच्चि टस्कर्स पहले ही बाहर हो चुकी हैं। दो अन्य टीमें, राजस्थान रॉयल्स और किंग्स इलेवन पंजाब, विदेशी मुद्रा से जुड़े नियमों और मालिकाना हैसियत से जुड़े आरोपों का सामना कर रही हैं। पंजाब की टीम अदालत में गई और अदालत ने संबंधित पक्षों को आपस में मामला सुलझाने को कहा। उन्होंने सुलझा भी लिया। कैसे सुलझाया, बीसीसीआई इसका उपाय बेहतर जानती है।
राजस्थान रॉयल्स पर फरवरी में सौ करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इस तरह के आचरण र्आपीएल टीमों के लिए आम बात हो गई है। ईएसपीएन क्रिक इन्फो के मुताबिक, प्रवर्तन निदेशालय ने ‘आईपीएल की विभिन्न टीमों व बीसीसीआई को फेमा उल्लंघन के मामले में लगभग 2000 करोड़ रुपये के कम से कम 24 कारण बताओ नोटिस भेजे हैं।’
आईपीएल की एक टीम का मालिकाना अधिकार देश के सबसे लोभी राजनीतिक घराने के पास है। यह परिवार करुणानिधि-मारन परिवार है। मुङो इस टीम से जुड़ी खबर का इंतजार है। करुणानिधि-मारन कुनबे ने ऐसे मामले में हमें कभी निराश नहीं किया है! मौजूदा बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के पास भी एक टीम है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह सब चीजों पर नजर रखेंगे। लीग में शामिल टीमों का इल्जाम है कि अपनी चेन्नई सुपर किंग्स के फायदे के लिए उन्होंने नियमों को तोड़ा-मरोड़ा। साल 2010 में उन्होंने राजस्थान रॉयल्स की कलाई इसलिए मरोड़ी, क्योंकि वह टीम एंड्रयू फ्लिंटॉफ को लेना चाहती थी, जबकि फ्लिंटॉफ को वह खुद अपनी टीम में रखना चाहते थे। उस वक्त समाचार एजेंसी पीटीआई ने इससे संबंधित ललित मोदी के ई-मेल को जारी किया था, जो उन्होंने एन श्रीनिवासन को भेजा था। पीटीआई ने अपनी उस खबर में कहा था, ‘यह पहली बार नहीं है कि श्रीनिवासन विवादों में घिरे हैं। कुछ दिनों पहले ही बीसीसीआई के सेक्रेटरी ने यह आरोप लगाया था कि आईपीएल के दौरान चेन्नई सुपर किंग्स के पक्ष में अंपायर फिक्स थे।’
इस साल बीसीसीआई के मुखिया ने घरेलू मैचों में आर्थिक नुकसान उठाने के बदले चेन्नई में श्रीलंकाई खिलाड़ियों के खेलने पर रोक को अपनी सहमति दे दी। फरवरी महीने में फ्रेंचाइजी टीमों के अवार्ड के साथ छेड़छाड़ का दोषी मानते हुए बीसीसीआई पर 52 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
हमारे क्रिकेटर आखिर इन भ्रष्टाचारों के खिलाफ अपना मुंह क्यों नहीं खोलते? इसके पीछे एक बड़ी वजह है। भारत के सबसे वरिष्ठ व प्रतिष्ठित कमेंटेटर सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री को बीसीसीआई सालाना 3.6 करोड़ रुपये का भुगतान करती है। यह वो राशि नहीं है, जो सोनी कंपनी से उन्हें कमेंट्री के लिए मिलती है। यह अतिरिक्त धन है। आईपीएल भारतीयों की कट्टरता और उनके घनघोर पूर्वाग्रह की दलाली करता है। पेशेवर क्रिकेटरों को सिर्फ उनकी राष्ट्रीयता की वजह से इस लीग में शामिल होने से वंचित किया गया। पहले पाकिस्तानी खिलाड़ियों को और इस बार श्रीलंकाई क्रिकेटरों को। चीयर लीडर्स नस्ल के आधार पर चुनी जाती हैं। इसमें आपको काले रंग की लड़कियां नहीं दिखतीं। मेरा आरोप है कि नस्लवादी भीड़ को ध्यान में रखकर ऐसा किया जाता है।
क्रिकेटर भी भ्रष्ट हैं। पिछले सीजन में एक चैनल के स्टिंग ऑपरेशन के बाद पांच आईपीएल खिलाड़ियों को मैच फिक्सिंग के आरोप में निलंबित किया गया था। इस साल श्रीसंत और दो अन्य क्रिकेटर स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में अंदर किए गए हैं। लेकिन आयोजकों, टीम मालिकों, कमेंटेटरों, प्रसारणकर्ताओं और संबंधित लोगों को क्यों बख्श देना चाहिए? भारत की तीसरे दर्जे की विज्ञापन इंडस्ट्री ने दर्शकों की खातिर अपनी दखलंदाजी व बचकानी हरकतों से क्रिकेट की आत्मा को छलनी-छलनी कर दिया है।
मैं क्रिकेट प्रेमियों के उस एहसास को दफ्न नहीं होने देना चाहता, जो इतवार के मुकाबले में उन्होंने संजोया है और आईपीएल की दुखद और शर्मसार करने वाली घटनाओं के बीच भी जिनका मनोरंजन हुआ। लेकिन अब तो आगे आइए।
दैनिक हिंदुस्तान से साभार
