‘तूतक तूतक तूतियां है जवानों, तूतक तूतक तूतियां है जवानों’ यह गीत गुनगुनाते ही श्रीनगर का कमला नेहरू कॉलेज तालियों के शोर से गूंज उठा था। यह आवाज़ वादी के एक नौजवान उभरते हुए गायक की थी जो नौवीं क्लास में पढ़ता था। यह पहला मौका था जब इनायत उल्लाह बट ने अपनी आवाज़ का जादू स्टेज पर बिखेरा था, फिर वापस मुड़कर कभी नहीं देखा। उसके रगों में खून की जगह मानों संगीत की रवानी थी। दीवानगी ऐसी कि इनायत ने बचपन से ही संगीत की तालीम लेना शुरू कर दी थी। उसकी जवानी संगीत को समर्पित थी और वही उसका पहला प्रेम भी था। संगीत की बारीकियां सीखने के लिए इनायत ने 12वीं पास करने के तुरंत बाद श्रीनगर के इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूज़िक एंड फाइन आर्ट्स में दाखिला लिया। तीन साल की पढ़ाई खत्म की और दूरदर्शन में जगह बनाई। रेडियो कश्मीर पर भी इनायत की आवाज़ दस्तक देने लगी थी। अपनी गायकी में रम गए इस नौजवान ने एक नौसखिए गायक से नामवर होने तक का सफर बेहद कम वक्त में नाप डाला था। अब दूरदर्शन और रेडियो कश्मीर पर उसकी हाजिरी मुस्तक़िल लग रही थी। स्टेज पर उसकी मौजूदगी की खबर संगीतप्रेमियों को खींच लाने की जमानत होती थी। दीवानगी का आलम यह था कि इनायत ने साल 2000-01 में अपना प्रॉडक्शन हाउस खोल लिया और दूरदर्शन उसके एलबमों को प्रसारित करने लगा।
अपनी काबिलियत से कमाई गई शोहरत इनायत की जेब में रहती थी। निजी जिंदगी और परिवार में सब ठीक चल रहा था कि अचानक एक हादसे ने सबकुछ उलट कर रख दिया। घर की सीढ़ियों पर फिसल जाने की वजह से उसके कूल्हे की हड्डी टूट गई। कई सर्जरी के बाद भी इनायत तीन साल तक बिस्तर पर पड़ा रहा। इनायत की दुनिया उससे दूर जा रही थी। उसने भी खुद को महज़ अपने बिस्तर के इर्द-गिर्द ही महदूद कर लिया था। जिंदगी बिस्तर पर पड़े-पड़े पांच वक्त की नमाज़ और इस्लामिक रिसाले के अध्ययन तक सिमट कर रह गई थी। हालांकि वक्त गुज़रने के साथ ही इनायत का इलाज दिल्ली में करवाया गया और वह बैसाखी के सहारे चलने लगा था।
मां-बाप और छोटे भाई-बहन का संतुलित परिवार बेकरी का कारोबार करता था। पूरी तरह चलने-फिरने में असहाय इनायत ने कारोबार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। जिंदगी पहले जैसी ना होने के बावजूद दोबारा पटरी पर लौट आई थी। घर-परिवार में सब खुश थे, लेकिन यह कहानी का अंत नहीं है। 30 जून 2006 की रात साढ़े नौ बजे इनायत का भाई दुकान बंद कर घर चला जाता है जोकि दुकान से सटा हुआ था। दुकान और घर के सामने इखवान होटल है जिसपर तब सीआरपीएफ की 46वीं बटालियन का कब्ज़ा था। रईस ने हाथ में लिए पानी के गिलास से अभी एक भी बूंद हलक के नीचे उतारी थी कि बाहर गोलियों की आवाज़ सुनाई दी। रईस को लगा कि इखवान होटल पर कोई मुठभेड़ हो गई है। मां ने तुरंत घर की सारी बिजली बंद करने के कहा।
परिवार के सारे सदस्य किचन में चले गए थे लेकिन इनायत उनमें नहीं था। परेशान घरवाले इनायत को ढूंढने तुरंत बाहर की दौड़े जहां सड़क पर खून से सना एक नौजवान पड़ा था। वह इनायत था। घर के सदस्यों ने इनायत के शरीर को ढंक दिया और सीआरपीएफ को दोबारा फायर नहीं करने की गुज़ारिश की, लेकिन जो होना था वह हो चुका था। सीआरपीएफ ने गोली इनायत के सीने में दागी थी। रईस उसे लेकर तुरंत पास के अस्पताल पहुंचा। रिश्ते-नातेदार भी जमा हो गए थे। बिना बैसाखी चलने में असहाय नौजवान की हत्या से स्थानीय बाशिंदों में जबरदस्त गुस्सा था।
रईस मौका-ए-वारदात पर मौजूद एक गवाह को याद करते हैं- ‘इनायत दुकान के बाहर से खड़ा होकर सजावट को निहार रहा था कि तभी सीआरपीएफ ने उसे पास बुलाया और गोली मार दी।’ रात क़रीब 12 बजे इनायत ने रईस को पास बुलाया और डॉक्टर से ऑक्सीज़न मास्क हटाने के लिए कहा। ‘मां-बाप की बात हमेशा मानना, पांच वक्त की नमाज़ ज़रूर पढ़ना और कुरआन की तिलावत करते रहना।’ यह इनायत के मुंह से निकले आखिरी लफ्ज़ थे जिसका ज़िक्र छोटे भाई रईस ने किया।
कश्मीर ने एक और नौजवान खो दिया था। इनायत की हत्या के विरोध में घाटी में बंदी रही। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने हत्या की निंदा की। आजादी समर्थक नेता भी इनायत के घर पहुंच गए। तब विपक्षी दल के नेता और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक़ अब्दुल्लाह और नागरिक संगठनों ने त्वरित न्याय का वादा किया था। लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए पुलिस ने सीआरपीएफ की 46वीं बटालियन के दो कांस्टेबलों पर हत्या का मुकद्दमा दर्ज किया। सीआरपीएफ ने अपने बचाव में इसे मिस्टेकेन आईडेंटिटी का मामला करार दिया, लेकिन परिवार ने सुरक्षाबलों के तर्कों को तुरंत खारिज कर दिया। परिवार के मुताबिक, सीआरपीएफ वाले इनायत को क़ायदे से पहचानते थे। वे दुकान पर अक्सर खरीदारी करने आते थे जिसे इनायत संभालता था। दोनों कांस्टेबलों ने इसके बाद परिवार से मुलाक़ात कर अपनी गलती मान ली और कहा-‘हमें नहीं मालूम कि गोली कैसे चल गई, बस चल गई।’ लेकिन रईस कहते हैं कि जब गोली क़रीब से और सीने में मारी जाती है, तो यह अपने आप नहीं चल जाती।
घाटी में माहौल ठंडा होते ही दोनों कांस्टेबलों को छोड़ दिया गया। ‘वह हिन्दुस्तान के किसी कोने में खुशी-खुशी अपनी जिंदगी गुज़ार रहे होंगे। हमारी सरकार ने कभी भी उनको अदालत तक लाने की कोशिश नहीं की। सभी ने बहानेबाज़ी की और इनायत की हत्या को लापरवाही के मामले में बदल दिया गया।‘ रईस यह सब कहते हुए बेहद भावुक हो जाते हैं क्योंकि इंसाफ के लिए सालों से अदालत का चक्कर काटने के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात रहा। रईस अब मान बैठे हैं कि कश्मीर में इंसाफ पाना तिल से तेल निकालने जैसा है, लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। इनायत के पिता और छोटी बहन अभी भी इंसाफ की आस में अदालत के चक्कर काटते हैं। रईस मांग करते हैं कि उमर अब्दुल्लाह की सरकार को हम जैसे पीड़ित परिवारों के लिए एक विशेष समिति गठित करनी चाहिए ताकि न्याय मिल सके। सिर्फ इंसाफ ही हमारे दर्द का इलाज है।
बीते सात साल में परिवार के लिए बहुत कुछ बदल चुका है, लेकिन वह काली रात घरवालों को अभी भी सालती है। घाटी में ऐसे जाने कितने परिवार हैं जो अनायास गोलियों का निशाना बन गए और ज़ेहनी दबाव में जीने को मजबूर हैं। इनायत का परिवार भी उन्हीं में से एक है। इंसाफ की उम्मीद में ग़मज़दा परिवार कई शारीरिक और ज़ेहनी बीमारियों का शिकार हो गया है। सात साल के बाद भी इनायत की मौजूदगी का एहसास आंखों में आंसुओं का सैलाब ला देता है। जिंदगी बढ़ती जा रही है, लेकिन इनायत के परिवार ने मानों 30 जून की रात के बाद अगली सुबह नहीं देखी है। रईस अब इनायत के बारे में बात करने से भी कतराते हैं। मुनव्वराबाद के जिस चौक पर इनायत को गोली मारी गई थी, वहां शहीद इनायत चौक का बोर्ड लगा दिया गया है। बोर्ड के एक ओर इखवान होटल है और दूसरी ओर सीआरपीएफ की 46वीं बटालियन का कैंप। दूसरी दिशा में बेकरी की वह दुकान है जहां इनायत बैठा करता था और साथ में सटा हुआ उसका घर। फर्जी मुठभेड़ के सैकड़ों मामले घाटी में इसी तरह इंसाफ के लिए भटक रहे हैं, लेकिन राहत किसी को नहीं मिली। इसके बावजूद घाटी में फर्जी मुठभेड़ों का सिलसिला मुसलसल जारी है जहां अपने नौजवान बच्चों को गंवा चुके परिवारों की तादाद बढ़ती जा रही है।
www.thekashmirwalla.com से साभार। अनुवादः शाहनवाज़ मलिक
