क्यूंकि तब, ठहर जायेगी तुम्हारे मस्तिष्क की नदी – ILA JOSHI

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अपेक्षाओं की इस उठापटक के बीच,
क्यूँ तोड़ रहे हो
अपने दिल-ओ-दिमाग के बीच बना वो पुल…
… अगर कहने और चाहने से,
समझती ये दुनिया,
सब कुछ थमा रह जाता,
न होते तुम यूँ व्याकुल…
मत चाहो के सुलझ जाएँ,
तुम्हारी सारी उलझनें,
कुछ नया और अलग न होगा फ़िर,
न नया जन्म,
न मौसमों का बदलना,
धूप के बाद छाँव का आना,
आंसुओं का हंसी में बदल जाना…
क्यूंकि तब, ठहर जायेगी तुम्हारे मस्तिष्क की नदी,
बन जाएगी वो एक तालाब,
और उसी में सड़ेगी तुम्हारी सोच…
उसमें तरंगे लाने के लिए,
न रहेंगे ताज़ा विचार,
कुछ नए चेहरे,
कुछ हो सकने वाले अनुभव…
रहोगे तो केवल तुम,
दुनिया से और ख़ुद से आँखें फेरे,
आखिर इसी दुनिया का तो हिस्सा हो तुम….

2 thoughts on “क्यूंकि तब, ठहर जायेगी तुम्हारे मस्तिष्क की नदी – ILA JOSHI

  1. बहुत अच्छी कविता …चुनौतियों के बीच से ही नयी राहें निकलती हैं ।

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