हाँ मुझे जलन होती है,
उन सब लोगों से,
जिनकी ज़रूरतों को,
माना जाता है ज़रूरत,
मिलता है उन्हें,
प्यार,
दुलार,
सहानुभूति,
कंधे का सहारा..
और मेरी उन ज़रूरतों को भी तुम,
करते हो नज़रंदाज़,
लगती हैं तुम्हे
वो अव्वल दर्ज़े की बेवकूफियाँ,
मेरे मूर्ख होने के सबूत,
प्यार तो बहुत दूर की बात,
तरसती हूँ मैं,
तुम्हारी आवाज़ तक सुनने को…
माँ की तरह मत करना,
समझदार होने की सजा मत देना,
मत छीनो मुझसे,
मेरे हिस्से का प्यार,
मज़बूत बनाने के लिए,
मुझे कठोर मत बनाओ,
भावनाओं पर
विजय पाने की चाह में,
कहीं मैं भावनाओं से ही
परे न हो जाऊं…
एक बात कहूं,
मुझे इस दफा,
बचपन जीने दो,
कहीं सही ग़लत के बीच,
एक बार फिर
मैं उम्र से आगे न निकल जाऊं….
