कौन सा इस्लामी आतंकवाद ? – खुर्शीद अनवर

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काफ़ी पहले एक मित्र ने मुझे अल्लाह हाफिज कहा . तो सोचा इस पर लिखूं. बचपन से खुदा हाफिज सुनते आये थे अचानक कब खुदा गायब हुआ और अल्लाह आ गया हाफिज में. इलाहबाद का हूँ जहाँ सिर्फ मुस्लिम नहीं हिंदू भी बड़े आराम से खुदा हाफिज कहते रहे हैं

इसकी प्रष्ठभूमि

1978 में जिया उल हक सत्ता में आया पकिस्तान में उसने पहला काम किया सऊदी अरबिया के साथ सम्बन्ध गहरे करने का. अमरीकी डालर के साथ पेट्रो डालर दरकार थे. आते साथ उसने लायलपुर का नाम फैसलाबाद रखा किंग फैसल के नाम पर. किंग फैसल कि मौत 1975 में हुई थी फ़ौरन बहुत बड़ी रकम आई पकिस्तान . तुरंत बाद 1979 में दो बड़ी घटनाएं हुई. सोविअत फौजों का अफगानिस्तान आना और खुमैनी का इरान में सत्ता संभालना. दोनों अमरीका और सौदे के लिए खतरनाक था. इरान शिया बाहुल्य देश और खुमैनी शिया लीडर और सारे कानून शिया थिओलाजी के लागू हुए. यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि इरान कि जबान फ़ारसी है और खुदा लफ्ज़ फ़ारसी का है. सऊदी अरबिया की जबान अरबी है और अल्लाह लफ्ज़ अरबी का है. जिया को साबित करना था कि वह घोर इरान विरोधी है . पाकिस्तान में फटाफट सारे सारे ऐसे काम हुए जिस से सऊदी और अमरीका खुश हों. पकिस्तान अचानक इस्लाम से सुन्नी इस्लाम कि तरफ बढ़ गया. अहमदिया, बोहरा , कादियानी और ज़रा बाद में शिया समुदायों को इस्लामी दायरे से हटाने कि मुहीम भी शुरू हो गयी. इसके अलावा जो मूर्खतापूर्ण कदम था वह जिया का मीडिया , (रेडियो , टी वी, अखबार को निर्देश कि खुदा कि जगह अल्लाह इस्तेमाल करें. पहली बार पकिस्तान रेडियो पर 1979 में सुना गया “ अल्लाह हाफ़िज़” . धीरे धीरे खुदा ने गठरी संभाल ली और अल्लाह को अपनी सीट दे दी.
क्या इस्लामी आतंकवाद जैसी कोई चीज़ है?

इतिहास से

अप्रैल 1900 में अंग्रेजों ने यूनाइटेड प्रोविंस में फारसी लिपि कि जगह नगरी चलाने का आदेश दिया . यहाँ के समृद्ध मुस्लिमों ने इसे अपने कल्चर पर हमला समझा जबकि उर्दू उतनी ही हिंदुओं कि भाषा थी जितनी मुसलमानों की. लेकिन एलीट मुस्लिम इसे अपनी बपौती समझता था. उधर 1905 में बंग भंग हुआ . पूर्वी बंगाल मुस्लिम बाहुल्य और पश्चिम बंगाल हिंदू बाहुल्य . अंग्रेज जानता था कि इस से क्या होगा , हुआ वही 1906 में मुस्लिम लीग कि ढाका में स्थापना हुई . स्थापना करने वाले कौन थे यह गौरतलब है . या तो वे जो सर कि उपाधि पा चुके थे या नवाब . आम इंसान इन से दूर रखा गया . अब शरू हुई साम्प्रदायिकता की खुली राजनीति. इन नवाबों और समृद्ध नोबिलिटी को लगा कि अब हाथ से सत्ता जा रही है. मुस्लिम लीग ने अब बंगाल के साथ साथ यूनाइटेड प्रोविंस और पंजाब में अपनी जड़ें मज़बूत करनी शुरू की .

1915 में हिंदू महासभा के गठन के बाद दोनों ताक़तें एकदम सामने आ गयी और सिलसिला शुरू हुआ हिंसा का.

अब अत्यंत महत्वाकांछी नेता लियाकत अली खान ने इसी दौरान 1923, में लीग में शामिल हो गया और मामला साम्प्रदायिक रंग लेने लगा.

1941, ने जमात-ए-इस्लामी का गठन किया. यह पहला वहाबी कट्टरपंथ संगठन था और इसका नेता था मौलाना मौदूदी . जिसने बाद में मुस्लिम साम्प्रदायिकता और हिंदू समेत तमाम गैर मुसलमानों के खिलाफ नफरत का बीज बोया. इसी के प्रभाव में मनगढंत इस्लामी कानून बने. आज भी वहाबी कट्टरपंथी इसको सर आँखों पर बिठाते हैं.
सऊदी अरब के साथ सम्बन्ध बनाने में इसकी बड़ी भूमिका रही.

इसी की परंपरा को आगे ले जाने वाला, और सेना, आई एस आई समेत पूरे पाकिस्तान को सांप्रदायिक रूप देने वाला जिया उल हक था. हिंदू नफरत के बीज यहाँ से मज़बूत हुए पाकिस्तान में. मदरसों में पाठ्यक्रम बदले इसी दौरान जो “ काफिरों” के खिलाफ थे . यहीं से निकलना शरू हुए भारत से नफरत करने वाले और हिंदुओं से नफरत करने वाले. लेकिन इतका निशाना अभी भी गैर वहाबी ( शिया, बोहरा कादियानी, अहमदिया मुस्लिम ) रहे . यह हिंदुओं और इन मुस्लिमों को एक ही नज़र से देखते हैं .

वर्तमान

अब ज़रा दूसरा पहलू. इस्लाम में कुल 72 सेक्ट हैं. इसमें शिया और सुन्नी सबसे बड़े सेक्ट हैं. सुन्नी सेक्ट में तो तरह के अनुयायी हैं . बहुत बड़ी तादाद में पारंपरिक सुन्नी और बेहद छोटी तादाद वहाबी सुन्नी की.( कुल लगभग सुन्नी समुदाय का पांच प्रतिशत ) जिया-उल-हक वहाबी था और पूरा सऊदी अरब वहाबी राष्ट्र है. धरती पर एक मात्र. इसने जब सोविअत संघ के विरोध में फ़ौज खड़ी की तो उसमे वहाबी ही रहे. याद रहे कि गैर वहाबी लोग इन संगठनों में न तब जा सकते थे ना अब. मतलब पूरे इस्लामी परंपरा के पाच प्रतिशत लोगों में से ही. अब इन पांच प्रतिशत लोगों में सारे के सारे तो आतंकवादी नहीं हो सकते. दुनिया में वहाबी समुदाय के अलावा केवल एक ही बंदूकधारी संगठन है वह है हिजबुल्लाह जो कि लेबनोन में है और सिर्फ इजराईल से लड़ता है फिलिस्तीन के लिए ..इसके अलावा कहीं इसने पटाखा तक नहीं फोड़ा.
यहाँ एक बात और महत्त्वपूर्ण कि 1979 के पहले आतंकवाद की एक भी घटना कहीं नहीं हुई . ( सन्दर्भ ऊपर है)

सऊदी अरब खाड़ी का सबसे धनवान और सब से प्रतिक्रियावादी देश है. और अमरीका का सब से पुराना मित्र. सोविअत संघ के विघटन के बाद सारे रास्ते साफ़ हो गए. अब रहा सऊदी अरब और पाकिस्तान. बिना इसकी मदद के अमरीका इराक और अफगानिस्तान में नहीं घुस सकता था . बिना इसकी मदद के अमरीका इजराईल के समर्थन में नहीं खड़ा हो सकता .

क्या कभी कोई ऐसा आतंकवादी नाम सुना है जो दक्षिण एशिया ,सऊदी अरब, या उस से आस पास से बाहर का हो.? ओसामा बिन लादेन . यह कमबख्त बिन बादल बिन बरसात कहाँ का नाम है ? वही नेता क्यों बना .

अब इसके लिए पैसा कहा से आता है लाखों करोड. और लोग कौन हैं जो आत्मघाती बन जाते हैं .याद रहे कि आज तक जितने आतंकवादी पकडे या मारे गए सब गरीब घरों से आये. सारे के सारे. आत्मघाती लोगों कि उम्र पर ध्यान देना ज़रूरी है.

इन लोगों को हथियार पकडाए जाते हैं जो सऊदी अरबिया ने चीन से अरबों में खरीदे और अमरीका ने बराबर ला ला कर दिए सोवियत फौजों के अफगानिस्तान में आने के बाद से. . और आज यही असलहे तालिबान सहित तमाम आतंकवादियों के हाथ में मुसलमानों का ही क़त्ल करने के काम आ रहे हैं .

अफगानिस्तान में तालिबान ने 1 जनवरी से लेकर अब तक लगभग 900 शिया हलाक किये ..वहाँ हज़ारा शिया होते हैं. क्यों ऐसा हुआ. क्योंकि हज़ारा शिया और इरान शिया बाहुल्य राष्ट्र . हमारे मौनी बाबा मनमोहन कि इरान यार्ता के मद्दे नज़र ….राजनैतिक खेल पकिस्तान का. ….गौर कर के देखो
जमात और देवबंद आज़ादी से पहले विभाजन के विरोधी थे. विभाजन के बाद पकिस्तान बनते समय दो मौलाना, मौलाना मौदूदी और मौलाना अबुल हसनात पकिस्तान गए और 1948 से ज़हर घोलना शुरू किया. मगर कामयाबी मिली जिया उल हक के आने के बाद.

इन वहाबियों ने सुन्नी समुदाय को बेहद बदनाम किया क्योंकि यह भी हैं तो सुन्नी. आज तक इन लोगों ने जितने हमले किये और जितने क़त्ल किये उसमे से 60 प्रतिशत शिया समुदाय तो हैं पर अहमदिया, बोहरा, इस्माइली के साथ साथ सुन्नी समुदाय भी कम निशाना नहीं बना है

वहाबी सूफ़ी मज़ारों से नफ़रत करते हैं और बहुत बड़ी सुन्नी जनसँख्या सूफ़ी संतों में मज़ारों पर जाति. है. बाबा बुल्ले शाह, बाबा फरीद कौन इन वहाबियों के निशाने से बच पाया? इंसानी एकता के प्रतीक इन सूफ़ियों के मज़ारों को वाटल का मैदान बनाया इन आतंकी वहाबियों ने.

भारत में हुई कुछ आतंकी घटनाओं को एक तरफ रख कर देखा जाये तो 1979 के बाद अब तक आतंकी गतिविधियों में जो लाख से ऊपर मारे गए लोग हैं उनमे इस्लाम के अनुयायिओं का प्रतिशत क्या है? लगभग 98% .

अब सवाल है कि जिसे हम इस्लामी आतंकवाद कहते हैं, और जिसके नाम पर कहा जाता है “ सारे मुसलमान आतंकवादी होते है” वह कौन लोग हैं. कितने प्रतिशत हैं? किसे मार रहे हैं. वह खुद मुसलमान हैं क्या.

कौन सा इस्लामी आतंकवाद ?

खुर्शीद अनवर

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