
हम यहूदियों के खिलाफ नहीं फासीवादी विचारधारा ज़ियनवाद के मुखालिफ हैं
इस्राइल और जियनवाद के बारे में दस जरूरी बातें
1. सामी विरोध एक नस्लवादी विचारधारा है जिसके निशाने पर यहूदी होते हैं। समाज में उसकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक जड़ों के खिलाफ संघर्ष जरूरी है।
2. जियनवाद-विरोध दरअसल जियनवादी आन्दोलन के खिलाफ संघर्ष है। जियनवाद एक ऐसा आन्दोलन है जिसका उद्गम 19वीं सदी में हुआ है और जिसने देशज फिलिस्तीनी आबादी की कीमत पर विशिष्ट यहूदी संस्कृति वाले मुल्क के स्थापना की बात की तथा इसके लिए फिलिस्तीन में यहूदियों को एकत्रिात करने का प्रस्ताव रखा। फिलिस्तीनी अवाम के विशाल बहुमत की अपने घरों से बेदखली के रूप में और उन्हें शरणार्थी बनाने के रूप में जियनवाद की परिणति हुई। इस्राइल की नीतियों और ढांचे के खिलाफ संघर्ष इस तरह एक उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष है जो अपने मुल्क में फिलिस्तीनी अवाम के राष्ट्रीय अधिकारों को बहाल करेगा।
3. जियनवाद या इस्राइल राज्य यहूदियों और यहूदी धर्म के प्रतिनिधि नहीं कहे जा सकते। दरअसल, कई सारे रूढ़िवादी यहूदीµविशेषकर फिलिस्तीन के रहने वाले लम्बे समय तक जियनवाद के कट्टर विरोधी थे। यह बेहद दुखद है कि यहूदी समुदाय के तमाम सामाजिक और धार्मिक नेता अपने नैतिक अधिकार के बलबूते इस्राइल की उपनिवेशवादी और नस्लवादी नीतियों को ढंकने के लिए तैयार हैं।
4. न केवल इस्राइल फिलिस्तीनी अरब अवाम का उत्पीड़न करता है, उसका अपना वजूद सामीविरोध के खात्मे के लिए कोई योगदान नहीं देता। अनुचित तरीके से अपने आप को विश्व यहूदी जनसमुदाय का नुमाइंदा घोषित करके भले ही यहूदी आबादी का सात में से छह हिस्सा इस्राइल के बाहर रहता हो और इस्राइल के यहूदियों के साथ बिना शर्त एकजुटता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय जनमत तैयार करके, जियनवादी नेता वास्तविकता में सामीविरोध को हवा देते हैं। यह अरब मुल्कों के सन्दर्भ में बिल्कुल सही बात है।
5. इस्राइल को नात्सी उत्पीड़न की उपज नहीं कहा जा सकता। 19वीं सदी की अन्तिम चैथाई में ही फिलिस्तीन के जियनवादी औपनिवेशीकरण की नींव पड़ी।
6. फिलिस्तीन के प्रति यहूदियों के कथित ‘‘ऐतिहासिक अधिकारों’’ को खारिज करना जरूरी है। ईसवी 70 में जुडिया पर रोमन कब्जे के पहले ही यहूदी आबादी का तीन चैथाई हिस्सा फिलिस्तीन के बाहर रहता था। जिस तरह फिलिस्ताइनों, फोनेशियनों और बाकियों को समाहित किया गया उसी तरह जो लोग बचे रहे उन्हें अड़ोस-पड़ोस की आबादी ने धीरे-धीरे अपने में समाहित किया। दरअसल यह विडम्बनापूर्ण है कि आज के फिलिस्तीनी एक तरह से मूल हिबू्र आबादी के ही वारिस हैं।
7. जियनवाद के लिए फिलिस्तीन पर नियंत्राण कर पाना मुमकिन हुआ क्योंकि उसे साम्राज्यवादी ताकतों ने निरन्तर साथ दिया; पहले ओटोमॉन साम्राज्य, फिर ब्रिटिश और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका ने उसका साथ दिया। मौजूदा वक़्त में वह मध्यपूर्व की अग्रणी सैनिक शक्ति है क्योंकि उसे संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता और सक्रिय समर्थन प्राप्त होता है, जो उस इलाके में अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए इस्राइल का इस्तेमाल करता है।
8. इस्राइल कोई ‘‘समाजवादी’’ राज्य नहीं है। इसके विपरीत, वह इलाके में पूंजीवाद का सबसे मजबूत गढ़ है। किबुत्झिमµ जो सामूहिक फार्म हैंµकिसी भी तरह से समाजवादी नखलिस्तान नहीं है, जैसा कि सरलीकृत प्रचार में कहा जाता है। वे बड़े पैमाने पर बैंकिंग क्षेत्रा पर निर्भर होते हैं, जो अक्सर अरब एवं गरीब यहूदी श्रमिकों के शोषण पर टिके होते हैं और कई मामलों में उन्हें नये सिरे से अधिगृहित फिलिस्तीनी इलाके के औपनिवेशीकरण की सहायता के लिए सैनिक अड्डों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
9. इस्राइल कोई ‘‘जनतांत्रिाक’’ राज्य नहीं है। वह एक नस्लवादी और पुरोहिती राज्य है, जो देशज आबादी को बेदखल करने, हर यहूदी के ‘‘वापसी के अधिकार’’ के संस्थाकरण (जबकि उन तमाम फिलिस्तीनियों को जिन्हें उसने बेदखल किया, उन्हें ऐसे अधिकार से वंचित करने) और उसकी सीमाओं पर बसी श्रमिक अरब आबादी के उत्पीड़न पर आधारित है। इस्राइल के अन्दर अरब जनता को औपनिवेशिक ‘‘अपवादात्मक’’ कानूनों के अन्तर्गत रहना पड़ता है, जिनका निर्माण ब्रिटिशों ने किया था जब फिलिस्तीन उनका उपनिवेश था। इन कानूनों के तहत सेना को यह अधिकार है कि वह बिना कारण लोगों को बेदखल करे, उन्हें जेल में ठूंसे और उनकी सम्पत्ति पर कब्जा करे। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब ब्रिटिशों ने इन औपनिवेशिक अध्यादेशों को जियनवादी आबादी पर लागू किया, तब इस्राइल के पूर्व कानून मंत्राी शापिरा ने कहा, ‘‘नात्सी जर्मनी में भी ऐसे कानून नहीं थे।’’
10. जियनवाद और इस्राइल राज्य की संरचना के अन्तर्गत फिलिस्तीन की यहूदी आबादी के सामने एकमात्रा भविष्य युद्ध ही है। यहूदियों के सामने एकमात्रा समाधान यही है कि वह एक समाजवादी, जनतांत्रिाक और धर्मनिरपेक्ष फिलिस्तीन के अन्तर्गत फिलिस्तीनी अरबों के साथ बन्धुतापूर्ण रिश्ते
हमज़ा इब्राहीम की कविता का अनुवाद यह कविता ज़ियनवाद के ज़ुल्म से लड़ते फिलिस्तीनियों की आवाज़ है
अंजाम तक
(अनुवाद : खुर्शीद अनवर)
मेरे वतन
मेरे वतन
अज़मत तेरी और तेरा हुस्न
तेरे पहाड़ों में छिपी
शौकत, जमाल-ओ-सादगी
माहौल में धज का समां
जीवन का चलता कारवां
खुशियां बिखरती हैं जहां
उम्मीद की अंगडाइयां
क्या देख पाऊंगा तुझे
शादाब और महफूज़ मैं
बा-इज्ज़त और पुर वक़ार
क्या देख पाऊंगा तुझे
ऐसी बुलंदी की तरफ
जो कहकशां को चूम ले
इस मुल्क का कोई जवां
थक, हार सकता ही नहीं
आज़ादी का परचम लिए
वह मौत से टकरायेगा
और मौत के होठों से वह
बस जाम पीता जायेगा
पर अब नहीं मुमकिन कि हम
दुश्मन के कारिंदे बने
उनकी गुलामी हम करें
बेइज़्जती सहते रहें
और ज़िंदगी मर-मर जियें
हम लेंगे वापस अज़मतें
अपने वतन की नेमतें
मेरे वतन
मेरे वतन
एक हाथ में तलवार है
दूजे कलम की धार है
अब यह हमारे हैं निशां
इनसे ही होगा सब बयां
अब गुफ्तगू किस काम की
अज़मत का लेकर अज़्म हम
अब उठ खड़े हैं हम वतन
इज़्ज़त का बा-इज़्ज़त कदम
लहरायेंगे परचम अब हम
अय मुल्क तेरे सीने से
उखड़ेंगे दुश्मन के कदम
जीतेंगे अब यह जंग हम
मेरे वतन
मेरे वतन
( By Khursheed Anwar for Hillele.org)